कहावत है कि का बरसा जब कृषि सुखाने और इस कहावत से सीख लेते हुए मानसून की पिछात बारिश में मारे खुशी के फूलकर कुप्पा होने से पहले यह सोचना जरुरी है कि आखिर नुकसान कितना हो चुका है। नुकसान हुआ है और भरपूर हुआ है। देश के खेतिहर इलाके के ६० फीसदी हिस्से पर, खासकर उत्तर-पश्चिमी हिस्से में, इस बार रबी की फसल नहीं काटी जा सकेगी और ये...
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पर्यावरण की राजनीति और धरती का संकट
खुद मनुष्य ने अपनी भावी पीढ़ियों की जिंदगी को दांव पर लगा दिया है। दुनिया भर में चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। सवाल ल्कुल साफ है- क्या हम खुद और अपनी आगे की पीढ़ियों को बिगड़ते पर्यावरण के असर से बचा सकते हैं? और जवाब भी उतना ही स्पष्ट- अगर हम अब भी नहीं संभले तो शायद बहुत देर हो जाएगी। चुनौती हर रोज ज्यादा बड़ी होती...
More »प्रधानमंत्री ने बोरलॉग के निधन पर शोक जताया
प्रधानमंत्री ने अपने शोक संदेश में कहा, "डॉ़ नॉर्मन बोरलॉग के निधन से एक युग का अवसान हो गया है, जिसमें उन्होंने कृषि में वैज्ञानिक क्रांति का सूत्रपात किया। साठ के दशक में जब देश भोजन की गंभीर कमी से जूझ रहा था उस समय डॉ़ बोरलॉग के उच्च उपज वाले बीजों के आने से भारतीय कृषि में प्रौद्योगिकीय क्रांति का पदार्पण हुआ जिससे देश को अनाज के मामले में...
More »किसानों को छह फ़ीसदी पर ऋण
नयी दिल्ली : बैंकों से कर्ज लेकर सही समय पर उसकी वापसी करनेवाले किसानों को अब तीन लाख रुपये तक का फ़सली कर्ज छह प्रतिशत की ब्याज दर पर मिलेगा. बाकी किसानों के लिए सात प्रतिशत ब्याज पर फ़सली ऋण दिये जाने की योजना इस साल भी जारी रहेगी. किसानों को सस्ता फ़सली ण उपलब्ध कराने के लिए सरकार बैंकों और वित्त संस्थानों को दो प्रतिशत की दर से ब्याज...
More »भूख का बढ़ता भूगोल
भारत में जब से आर्थिक उदारीकरण आया है, एक अद्भुत विरोधाभास उदारवादियों में देखने को मिला है। जहां भारत में कई जगह अभ्युदय हो रहा है। वहीं हालात 20 साल से ज्यादा खराब होते गए हैं। खासकर लोगों की खुराक कम हुई है। सिर्फ जिंदा रहने के लिए लोग इस देश में भोजन ग्रहण कर रहे हैं और इसका मूल कारण जनसंख्या का बढ़ना नहीं है, जैसा कि अनुमान लगाया...
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