बाल दासता और बाल मजदूरी के खिलाफ दुनिया ने तो कैलाश सत्यार्थी की आवाज़ सुनी। उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। बाल मजदूरी के उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून भी बना। लेकिन सत्यार्थी की बात उनके अपने ही देश में नहीं सुनी जा रही है। करीब दस साल से सत्यार्थी सरकार से बाल श्रम उन्मूलन के लिए प्रभावी कानून बनाने और इसके लिए बने अंतरराष्ट्रीय कानून को लागू...
More »SEARCH RESULT
खाली हैं अन्न उपजाने वाले हाथ- देविन्दर शर्मा
कृषि मोर्चे पर एक नया संकट आ गया है। सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार द्वारा किसानों को फसल उत्पादन की कुल लागत पर 50 प्रतिशत लाभ देने में असमर्थता जताने के बाद तलवारें खिंच गई हैं। मार्च के मध्य से ही कई किसान संगठन इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का विरोध कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि उनके साथ विश्वासघात हुआ है। वाकई लोकसभा चुनाव के दौरान ही...
More »यह आत्महत्या ऐसे नहीं रुकेगी- चौ. राकेश टिकैत
जय जवान, जय किसान अथवा अन्नदाता देवो भवः जैसे नारों के साथ सत्ता में आने वाली सरकारें किसानों के प्रति हमेशा संवेदनहीन रही हैं। नहीं तो आज प्रत्येक बीस मिनट में एक किसान और कर्ज के कारण सालाना 12,000 किसान आत्महत्या करने को मजबूर नहीं होते! प्रधानमंत्री मोदी पुराने कानूनों को बदलने की बात जरूर कहते हैं, पर एनडीए सरकार के दस माह के कार्यकाल में किसान-विरोधी कानूनों को बदलने...
More »भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की समय सीमा 5 अप्रैल को हो सकती है खत्म
नई दिल्ली। अधिकांश राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के कड़े विरोध के मद्देनजर सरकार विवादित भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को समाप्त करने की अनुमति दे सकती है। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की समय सीमा 5 अप्रैल को समाप्त होगी। केंद्रीय कैबिनेट के एक वरिष्ठ मंत्री ने मंगलवार को बताया कि पांच अप्रैल को भूमि अधिग्रहण अध्यादेश समाप्त हो सकता है। उसके बाद हम देखेंग कि आगे क्या करना है। सरकार ने पिछले साल...
More »सरकार बदलते ही कैसे बदल जाता है खेती की लागत और मुनाफे का गणित
कृषि क्षेत्र के लिए टर्म्स ऑफ ट्रेड यानी उसके उत्पादों की मिलने वाली कीमत और उसके द्वारा खऱीदे जाने वाली वस्तुओं और उपयोग की जाने वाली सेवाओं के लिए चुकायी जाने वाली कीमत के अनुपात के मामले में एनडीए सरकारों का दौर किसानों के लिए फायदेमंद नहीं रहा है। इसे केवल संयोग कहा जाए या नीतियों के मोर्चे पर किसानों के हितों की अनदेखी। लेकिन सचाई यह है कि पिछली...
More »