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“इलेक्शन होगा, तो पढ़ाई भी होगा” सासाराम में भड़के छात्रों का नारा

-न्यूजक्लिक, इस सोमवार 5 अप्रैल, 2021 को बिहार का सासाराम शहर अचानक भड़क उठा। शहर के कोचिंग संस्थानों में पढ़ रहे बच्चे उस वक्त अचानक उग्र हो गये जब पुलिस उनके कोचिंग संस्थानों को बंद कराने पहुंची। छात्रों ने पुलिस पर हमला कर दिया, कलेक्ट्रेट में घुस कर तोड़-फोड़ करने लगे। पुलिस बल की गाड़ियां क्षतिग्रस्त कर दीं और घंटों पूरे सासाराम जिले में वे हंगामा करते रहे। बहुत मुश्किल से...

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उत्तर प्रदेशः नाराज किसान महती चुनौती

-आउटलुक, “चुनावी वर्ष में भाजपा ने लंबी-चौड़ी नई कार्यसमिति बनाई, ताकि किसान नाराजगी, बेरोजगारी, विपक्ष की लामबंदी की काट तलाशी जा सके” किसानों ने औरंगजेब से लेकर अंग्रेजों की सत्ता भी एक हद तक ही स्वीकार की थी। ऐसे में मुझे डर है कि कहीं हमारे खिलाफ वैसा ही माहौल न बन जाए।” उत्तर प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी के एक नेता की यह बेचैनी काफी कुछ बयान करती है। बिगड़ते जमीनी...

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शरणार्थी शिविरों से लोगों को उठाती दिल्ली पुलिस, खौफ में रोहिंग्या शरणार्थी

-कारवां, 31 मार्च की सुबह दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने दिल्ली के कालिंदी कुंज शरणार्थी शिविर से एक रोहिंग्या परिवार के चार लोगों को उठा लिया. इनमें 70 वर्षीय सुल्तान अहमद, उनकी 45 वर्षीय पत्नी हलीमा और उनके दो बेटे, 28 वर्षीय नूर मोहम्मद और 19 वर्षीय उस्मान, थे. एक हफ्ते पहले पुलिस ने इसी तरह छह लोगों के एक परिवार को हिरासत में ले लिया था. कालिंदी कुंज शिविर के...

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गलत जेंडर पहचान, यौन हिंसा और उत्पीड़न: भारतीय जेलों में ट्रांसजेंडर होने की नियति

-द वायर, ए-4 आकार की एक नोटबुक नागपुर सेंट्रल जेल में किरण गवली द्वारा गुजारे गए 17 महीनों की गवाही देती है. किरण बगैर नागा किए हर दिन थोड़ा समय निकालकर दिन भर की घटनाओं का ब्यौरा लिखा करती थीं- नई बनाई गई दोस्तियों, वेदना, अकेलेपन और कभी -कभी दिल टूटने के बारे में. किसी-किसी दिन शब्द कविता की तरह बहकर आया करते थे, दूसरे दिनों में सिर्फ गुस्से से भरी कच्ची-पक्की...

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'पक्ष'कारिता: ‘उदन्‍त मार्तण्‍ड’ की धरती पर हिंदूकरण (वाया हिंदीकरण) की उलटबांसी

-न्यूजलॉन्ड्री, पश्चिम बंगाल के ऐतिहासिक बताए जा रहे असेंबली चुनाव में अगर इस बात को ध्‍यान में रखा जाय कि देश का पहला अंग्रेज़ी का अखबार और पहला हिंदी का अखबार, दोनों ही कोलकाता से छपना शुरू हुए थे, तो इस चुनाव को देखने-समझने की एक अलग दृष्टि हम पा सकते हैं. पश्चिम से छापाखाने का आना, अखबारों का छपना और सूचनाओं का सार्वजनिक वितरण कई मायने में उस परिघटना का...

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