पिछले दिनों लड़कियों और महिलाओं द्वारा बीयर पीने पर गोवा के मुख्यमंत्री के वक्तव्य पर आयी लड़कियों-महिलाओं की प्रतिक्रियाएं और तस्वीरों के प्रदर्शन अखबारों में देखकर बहुत पुरानी घटना स्मरण हो आयी. साल 1977 की बात है. मैं बिहार से दिल्ली रहने आयी ही थी. मुझसे 7-8 वर्ष पूर्व दिल्ली आयी एक रिश्तेदार महिला से बात हो रही थी. उसने कहा- ‘मेरी तबियत खराब हो गयी थी. दरअसल होली का...
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शहरीकरण के बढ़ते खतरे--- देवेंद्र जोशी
अनियोजित शहरीकरण आज किसी एक प्रदेश की नहीं, बल्कि पूरे देश की समस्या है। आजादी के सत्तर सालों में जहां कस्बे शहर, शहर नगर और नगर महानगर बनते चले गए, वहीं गांवों की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया। गांव आज भी गांव ही है। वही आबोहवा, आंचलिक संस्कृति, एक-दूसरे के सुख-दुख में हिस्सा बंटाने का आत्मीय भाव, अभाव में भी संतुष्टि और इस सबसे बढ़ कर छोटी-सी घटना...
More »उन पांच दिनों के नाम-- जयंती रंगनाथन
बात 1993 के अक्तूबर की है। पत्रकारों का एक दल लातूर में आए भूकंप का जायजा लेने मुंबई से वहां जा रहा था। उस दल में मैं भी थी। मुंबई से पुणे होते हुए दस घंटे की उस बस यात्रा के बाद जब सब थके-हारे चाय और खाने की तलाश में दो-चार हो रहे थे, मैं ढूंढ़ रही थी दवाई की दुकान। दुकान तो मिल गई, पर जब उससे पूछा,...
More »हवा में खड़े होते महल-- अरविन्द कुमार सेन
आज से तकरीबन दो दशक पहले की बात होगी। पूरी दुनिया में इंटरनेट और इस पर आधारित सेवाएं रफ्ता-रफ्ता पैर फैला रहीं थी। डोमेन नाम वाली वेबसाइट (संक्षेप में डॉटकॉम) खड़ी करने का एक अभियान पूरी दुनिया में चल पड़ा था। रातों-रात नए-नए आंतरप्रेन्योर यानी नवउद्यमी पैदा हो गए थे, जिनकी एकमात्र उपलब्धि डॉटकॉम वाली वेबसाइट का मालिकाना हक था। जड़विहीन समृद्धि पैदा करने के इस अभियान को मीडिया ने...
More »न्यायपालिका की गरिमा के प्रतिकूल - एनके सिंह
यह भारत की ही नहीं, दुनिया की न्याय बिरादरी में एक भूकंप की मानिंद था। भारत में न्यायपालिका और खासकर सर्वोच्च न्यायालय एक ऐसी संस्था है, जिस पर समाज का बहुत अधिक भरोसा है। जब कोई हर संस्था से न्याय की उम्मीद छोड़ चुका होता है, तो वह सर्वोच्च न्यायालय की ओर निहारता है, लेकिन शुक्रवार को इस न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा आनन-फानन एक संवाददाता सम्मेलन बुलाया जाता...
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