सबसे पहले एक स्पष्टीकरण। ये पंक्तियां किसी नेता, व्यक्ति या संगठन के पक्ष-विपक्ष में नहीं हैं। एक साधारण हिन्दुस्तानी के तौर पर मेरे मन में टेलीविजन पर कुछ दृश्यों को देखकर जो उभरा, यह उसकी अभिव्यक्ति मात्र है। मंगलवार की शाम को आंखें उस समय डबडबा आईं, जब मैंने टेलीविजन पर कुछ कंकालों, हड्डियों, कपड़ों आदि को पडे़ देखा। हिन्दुस्तानी सरजमीं से हजारों किलोमीटर दूर वे अवशेष उन हिन्दुस्तानियों के...
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कहीं बैंकों से भरोसा ना उठ जाय-- बिभाष कुमार श्रीवास्तव
अमेरिका में आए 2008 के वित्तीय भूचाल से पूरी दुनिया में अफरा-तफरी मच गई थी। बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को सरकार ने बेल-आउट पैकेज के माध्यम से उबारा। बेल-आउट का जबर्दस्त विरोध किया गया। लोगों ने कहा कि ‘करदाताओं' के पैसे से किसी विफल होती संस्था को उबारना नैतिक खतरे (मोरल हजार्ड) पैदा करता है। तब वित्तीय मामलों के जानकारों की तरफ से ‘बेल-इन' की नई अवधारणा पेश की गई।...
More »न बीतनेवाला दिसंबर-- सुजाता
दिसंबर बीतते हुए पिछले कई वर्षों का लेखा-जोखा आप से आप करने लगता है. ब्रेक्जिट, अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव, सीरिया का गृहयुद्ध, नोटबंदी, राष्ट्रगान, राष्ट्रभक्ति, इन सबका हिसाब लगाने के बाद भी एक दिसंबर बचा रहता है, जो कई वर्षों से नहीं बीता. न वह नया होता है न पुराना. वह बस टंग गया है दीवार पर. उसकी तारीखें बदलती हैं, लेकिन उसकी तासीर नहीं बदलती. यह हमेशा उतना ठंडा...
More »नौकरियों के लिए मुश्किल भरे दिन-- आकार पटेल
भारत ने उस प्रक्रिया की ओर बढ़ना शुरू कर दिया है, जिसे अनेक लोग बीते दो दशक का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार मान रहे हैं. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने से अप्रत्यक्ष कर सरल होंगे और कुछ लोगों की समझ में इससे आर्थिक वृद्धि को गति मिलेगी. कुछ इससे सहमत नहीं हैं, लेकिन उनकी नजर में भी यह एक अहम सुधार है. हम अन्य किन सुधारों की उम्मीद...
More »परंपरा और आधुनिक गणराज्य की खिचड़ी- एडवर्ड ए रॉड्रिग्ज, दिलीप मंडल
हरियाणा के सुनपेड़ की घटना के बाद केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह ने जो बयान दिया था, उसे लेकर गुबार अब थम चुका है। इस घटना को लेकर अब तमाम तरह की व्याख्याएं भी आ रही हैं। लेकिन जिस समय यह बयान दिया गया था, उस समय इस घटना की एक ही कहानी थी और वह बेहद दर्दनाक है। पुलिस में दर्ज एफआइआर के मुताबिक एक दलित परिवार के घर...
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