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कृषि में बेहतर होता बिहार-- के सी त्यागी

पिछले लोकसभा चुनाव से अब तक 10 राज्यों में भाजपा व कांग्रेस की सरकारों द्वारा किसानों के 2,33,069 करोड़ रुपये की कर्जमाफी की घोषणा की जा चुकी है. हाल ही में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में की गयी कर्जमाफी के बाद तेज बहस भी हुई कि क्या कर्जमाफी मौजूदा किसानी संकट का हल है? साल 2018 के दसवें माह तक कुल 10.5 लाख करोड़ रुपये का कृषि कर्ज बकाया...

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मोदी राज में किसान: डबल आमद या डबल आफत?

खेती-किसानी के मोर्चे पर केंद्र सरकार ने गुजरे चार सालों में क्या कुछ किया है, उसपर आप महज एक घंटे में राय बनाना चाहते हैं तो फिर यह पुस्तक आप ही के लिए है.(पुस्तक आप यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं)   किसानी के मोर्चे पर केंद्र सरकार के हासिल-लाहासिल को परखने के तीन रास्ते हो सकते हैं. एक तो सरकार के वादों को परखना कि वे किस हद तक पूरे हैं. दूसरे, सरकार के दावों...

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किसान आंदोलन का नया स्वरूप- मणीन्द्र नाथ ठाकुर

किसानों के प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया है कि खेती किसानी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. यह तो तय है कि जैसे-जैसे उत्पादन में उद्योग धंधे और पूंजी का महत्व बढ़ता जायेगा, वैसे-वैसे किसानों की हालत बिगड़ती जायेगी. दुनियाभर के पूंजीवादी देशों को देखकर लगता है कि बिना सरकारी सहायता के किसानों की हालत अच्छी नहीं हो सकती है. भारत में पूंजीवाद के बढ़ते कदम...

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आत्महत्या से बड़ा अपराध नहीं-- आशुतोष चतुर्वेदी

मेरा मानना है कि आत्महत्या और उसमें भी सामूहिक आत्महत्या से बड़ा कोई अपराध नहीं है. पिछले दिनों सामूहिक आत्महत्या की कई घटनाएं सामने आयीं, जो चिंतित करती हैं. इनमें से अधिकांश मामले आर्थिक परेशानियों से जुड़े हुए थे. रांची में आर्थिक तंगी से परेशान दो सगे भाइयों दीपक कुमार झा और रूपेश कुमार झा ने पहले परिवार के पांच सदस्यों की हत्या कर दी और फिर दोनों ने फांसी...

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किसानी से डरने वाला समाज-- मृणाल पांडे

आज के भारत भाग्य विधाता मानें या नहीं, अन्न उत्पादन के मामले में भारत का आत्मनिर्भर बन जाना, बीसवीं सदी की सबसे बड़ी घटनाओं और हमारी राष्ट्रीय उपलब्धियों में से है. लेकिन, कम लोगों को याद होगा कि हरित क्रांति के जनक नॉर्मन बोरलॉग ने नोबेल पुरस्कार ग्रहण करते वक्त भाषण में दो बातें कही थीं. पहला, हरित क्रांति अमरता की बूंदें पी कर नहीं आयी. इसका भी किसी दिन...

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