-डॉयचे वेले, कोरोना संकट के दौरान लाखों प्रवासी कामगारों ने यह सोच कर घरों का रुख किया कि वे अपने लोगों के बीच रहकर कुछ न कुछ करके जीवन-यापन कर लेंगे. लेकिन बिहार में रोजगार के सीमित अवसरों के बीच 'कुछ न कुछ' भी तलाशना उनके लिए भारी पड़ रहा है. अकुशल मजदूरों के लिए दिहाड़ी तो कुशल या अर्द्धकुशल कामगारों के लिए रोजगार के सीमित अवसर परेशानी का सबब बन...
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लॉकडाउन में रिवर्स पलायन के बाद एक बार फिर काम की तलाश में वापस लौटने लगे मजदूर
-गांव कनेक्शन, लॉकडाउन में जो मजदूर किसी तरह परेशानियों को झेलते और जद्दोजहद के बाद अपने गाँव पहुंचे थे, एक बार फिर जहां से आए थे काम की तलाश में फिर से वहीं के लिए लौटने लगे हैं। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल धार, झाबुआ, अलीराजपुर से मजदूरों का राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में काम के लिए पलायन शुरू हो गया है। ठेकेदार एक बार फिर अपनी जरूरत के लिए...
More »चुनावी हंगामे में रोजगार का मसला- हरजिंदर
इस बार आम चुनाव के दो थीम सॉन्ग हैं- रोजगार और कैश ट्रांसफर। ये दोनों गरीबी हटाने के सपने का हिस्सा हैं। कैश ट्रांसफर के सारे वादे सीधे और स्पष्ट हैं, जो छह हजार रुपये सालाना से शुरू होकर 72 हजार रुपये तक जाते हैं, साथ में कुछ पेंशन योजनाएं वगैरह भी हैं। लेकिन रोजगार के बारे में इतनी स्पष्ट बात नहीं की जा रही। पिछली बार भारतीय जनता पार्टी...
More »श्रमिकों की गरिमा व बिहार की अस्मिता-- मिहिर भोले
बिहार छोड़े मुझे पच्चीस वर्ष हो गये. तब से गुजरात में ही रहता हूं. फिर भी विभिन्न कारणों से लगातार बिहार आता-जाता रहता हूं. इस दौरान लोग-बाग अक्सर मुझसे गुजरात के बारे में प्रश्न किया करते हैं और मैं आदतन पूरी सच्चाई और निष्पक्षता से उसकी खूबियों और कमजोरियों की चर्चा करता हूं. चूंकि मैं राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं. मैं एक शिक्षक हूं, मेरी वैचारिक प्रतिबद्धता सिर्फ मेरे अपने अनुभव...
More »झारखंड का जनजातीय समाज -- जेबी तुबिद
झारखंड का जनजातीय समाज एक स्वाभिमानी समाज है. पीढ़ियों से समाज ने अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़कर अपनी पहचान को अक्षुण्ण रखा है. प्रकृति ने उन्हें लड़ने की क्षमता दी है. साथ ही प्रकृति के साथ सामंजस्य कर जीवन बसर करने के अलौकिक गुण भी दिये हैं. सांस्कृतिक दृष्टि से समाज काफी धनी है. जनजातीय समाज अपनी दुनिया में जीता है एवं दूसरे समाज को अपने में समाविष्ट...
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