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जलवायु परिवर्तन से जंग की आड़ में वैश्विक व्यापार में असमानता को बढ़ा रहे विकसित देश: सीएसई

डाउन टू अर्थ, 2 मार्च जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई की आड़ में अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्तियां मुक्त व्यापार का दामन छोड़ रही हैं। बड़े पैमाने पर सब्सिडी और टैरिफ के साथ यह देश संरक्षणवाद की ओर रुख कर रहे हैं। लेकिन क्या जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जारी जंग और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को इससे फायदा होगा। इस बारे में नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर...

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लुटता हिमालय: एक साथ कई चुनौतियों ने बढ़ाई मुश्किलें

डाउन टू अर्थ, 18 फरवरी  शहरीकरण भले ही विकास का एक पैमाना हो, लेकिन इसने हिमालय क्षेत्र को त्रासदी के मुहाने तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) की 2019 में प्रकाशित रिपोर्ट “द हिंदूकुश हिमालय असेसमेंट : माउंटेंस, क्लाइमेट चेंज, सस्टेनेबििलटी एंड द पीपल” के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय (एचकेएच) क्षेत्र की सबसे बड़ी आबादी भारत में रहती है। एचकेएच आठ देशों (अफगानिस्तान,...

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अपर्याप्त क्लाइमेट फाइनेंस के बीच, परिभाषा पर जारी है विकासशील देशों का संघर्ष

कार्बनकॉपी, 15 अक्टूबर साल 2024 तक दुनिया को एक नया जलवायु वित्त लक्ष्य (क्लाइमेट फाइनेंस टार्गेट) निर्धारित करना है — यानि वह राशि जो विकसित देशों द्वारा गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए दी जानी है। भारत की मांग है कि इसे सालाना 1 लाख करोड़ डॉलर तक बढ़ाया जाए। यह दूर की कौड़ी है, क्योंकि विकसित देश पिछले दस वर्षों में 100 अरब डॉलर सालाना प्रदान करने में...

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खतरे में है दिल्ली में पेड़ों की सभी प्रजातियों का अस्तित्व

डाउन टू अर्थ, 27 सितम्बर जलवायु में आते बदलावों के चलते दिल्ली में पेड़ों की सभी प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में है। इतना है नहीं एक नए अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते तापमान और बारिश में आते बदलावों के चलते दुनिया भर में शहरों में पाई जाने वाली पेड़ों की करीब आधी प्रजातियों का भविष्य संकट में है। यह जानकारी एक नए अध्ययन में सामने आई है जोकि 19...

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संसद में जलवायु परिवर्तन की बहुत कम होती है चर्चा

कार्बनकॉपी, 26 अगस्त भारत भले ही जलवायु परिवर्तन से सबसे संकटग्रस्त देशों में हो लेकिन यहां की संसद में इस ज्वलंत मुद्दे पर बहुत ही कम चर्चा होती है। इस विषय पर हुई एक रिसर्च से पता चला है कि 1999 से 2019 के बीच पूछे गये संसदीय सवालों में केवल 0.3% ही जलवायु परिवर्तन पर थे। यह हैरान करने वाली बात है क्योंकि देश में किसी भी तरह की समस्या...

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