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पोषक अनाजों की खेती:- वर्तमान और भविष्य

पोषक अनाजों की अहमियत को समझते हुए भारत सरकार ने खाद्य और कृषि संगठन के सामने एक प्रस्ताव रखा था। नतीजन पूरी दुनिया, वर्ष 2023 को, अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में मना रही है।भारत,दुनिया में पोषक अनाजों का सबसे बड़ा उत्पादनकर्ता है। साल 2020 में विश्व के कुल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी करीब 41 फीसदी के आस–पास थी। पढ़िए इस लेख में पोषक अनाजों पर विस्तार से; प्राचीन...

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ग्रेट बैकयार्ड पक्षियों के सर्वे में पाई गई 1,067 प्रजातियां: रिपोर्ट

डाउन टू अर्थ, 01 मार्च अखिल भारतीय सर्वेक्षण, द ग्रेट बैकयार्ड बर्ड काउंट (जीबीबीसी) के दौरान 1,067 पक्षियों की प्रजातियों को देखा गया। यह एक सालभर में किया जाने वाला कार्यक्रम है, जो हर फरवरी में 4 दिनों तक चलता है। जिसमें पक्षियों की गिनती करने और पक्षी संरक्षण में योगदान करने के लिए सभी स्तरों के पक्षी प्रेमियों को शामिल किया जाता है। यह सभी उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों को...

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हिमालय क्षेत्र के भविष्य के लिए ज़रूरी हैं नेचर-बेस्ड सलूशंस

द थर्ड पोल, 21 फरवरी बहुत पुराने वक्त से अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में आने वाली चुनौतियों का हल निकालने के लिए दुनिया भर में लोग प्रकृति का सहारा लेते आ रहे हैं। हम सबको प्रकृति से पर्याप्त भोजन प्राप्त होता है। पानी मिलता है। प्रकृति के माध्यम से ही जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाओं से होने वाले नुकसान को सीमित किया जाता है। खराब हो चुके वातावरण को...

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खाद्यान्न की कमी नहीं बल्कि पूंजीवादी मुनाफा है बढ़ती भुखमरी का कारण

जनचौक, 26 दिसंबर प्रकृति की गोद में आदि मानव के रूप में अपना जीवन शुरू कर आधुनिक इंसान ने अथाह प्रगति कर ली है। प्रकृति से संघर्ष की प्रक्रिया में संसाधनों को अपने जीवन को सुरक्षित करने के लिए उपयोग करने में महारत हासिल कर ली है। एक समय था जब इंसान का अधिकतर समय भोजन की खोज में गुजरता था। कृषि की खोज के साथ भोजन के लिए संघर्ष कुछ...

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सीबीडी कॉप-15: सबसे कम संरक्षित मूंगे की गहरी चट्टानों की रक्षा करने की तत्काल जरूरत

डाउन टू अर्थ, 13 दिसंबर  जैव विविधता पर कन्वेंशन के पक्षकारों के सम्मेलन की पंद्रहवीं (कॉप 15) बैठक जारी है, जिसमें दुनिया भर के नेता, सरकार के वार्ताकार, वैज्ञानिक और संरक्षणवादी हिस्सा ले रहे हैं। जो सात दिसंबर से शुरू होकर 19 दिसंबर 2022 तक जारी रहेगी, इसमें शामिल लोगों का उद्देश्य प्रकृति को होने वाले नुकसान को रोकने और उसे पहले जैसा रखने में सहमति बनाना है। इसी क्रम में...

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