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जिल्लत की जिंदगी जी रहीं महिलाएं इंसाफ के इंतजार में

गौतम चौबे, रायपुर। छत्तीसगढ़ में टोनही प्रताड़ना से पीड़ित महिलाएं 15 साल से न्याय का इंतजार कर रही हैं। सालों बीत जाने के बाद भी उनके माथे से कलंक नहीं मिट पाया है और वे जिल्लत की जिंदगी जी रही हैं। अदालत की धीमी रफ्तार के कारण अभी तक उन्हें इंसाफ नहीं मिल पाया है और वे वयोवृद्ध हो चुकी हैं। पीड़िता श्याम बाई साहू 70 साल की हो चुकी...

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विश्‍व फॉरेस्ट्री कॉन्फ्रेंस में उठा छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का मुद्दा

रायपुर। दक्षिण अफ्रीका के शहर डरबन में आयोजित वर्ल्ड फॉरेस्ट्री कॉन्फ्रेंस 2015 में छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की जीवन शैली और उनके मौजूदा हालात पर विचार-विमर्श किया गया। इस कार्यक्रम में राज्य के संरक्षित बैगा आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधि सुखराम बैगा, आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था आदिवासी वन जन अधिकार मंच की प्रतिनिधि इंदु नेताम और मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले में रहने वाली बैगा आदिवासी महिला उजियारो बाई...

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मध्‍यप्रदेश में उन्नति ऐप से बनेगी बैगाओं की कुंडली

बालाघाट(मध्‍यप्रदेश)। एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से नक्सली क्षेत्रों में निवासरत राष्ट्रीय मानव दर्जा प्राप्त आदिवासी बैगाओं के उत्थान के लिए अब 'उन्नति' का सहारा लिया जाएगा। दरअसल, बैगाओं का विकास करने के लिए कलेक्टर ने एक उन्नति नामक एड्राइंड ऐप तैयार किया है। जिसमें बैगाओं का सर्वे कराकर उनकी सारी कुडंली तैयार की जाएगी। बालाघाट के तीन आदिवासी अंचल बिरसा, बैहर, परसवाड़ा जपं के बैगाओं का सर्वे कर उनकी वर्तमान स्थिति...

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जनसंख्या विस्फोट के दौर में घट रही आदिवासी आबादी !

संदीप तिवारी, रायपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों की जनसंख्या वृद्धि दर घट रही है। जबकि इस दशक में सबसे ज्यादा जनसंख्या राज्य की बढ़ी है। नक्सल इलाकों में संरक्षित जनजातियां रहती हैं जिनमें बैगा, अबुझमाड़िया, बिरहोर, पहाड़ी कोरवा और कमार प्रमुख हैं। केंद्र सरकार ने इन संरक्षित जनजातियों के परिवार नियोजन पर प्रतिबंध लगा रखा है, लेकिन यह प्रतिबंध बेअसर साबित हो रहा है। प्रसव के...

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छत्‍तीसगढ़ में शिक्षा से कोसों दूर बैगा बच्चों के हाथ मछली का जाल

नई दुनिया,कोरबा (निप्र)। संरक्षित बैगा आदिवासी जनजाति वर्ग आज भी शिक्षा से कोसों दूर है। इस वर्ग को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लाख दावे सरकार कर ले, पर हकीकत कुछ और है। बैगा आदिवासी के बच्चे स्कूल का मुंह तक नहीं देखे हैं। कापी पुस्तक की जगह हाथ में जाल थाम लिया है और पूरा दिन मछली पकड़ने में बीत रहा। गांव से 5 किलोमीटर दूर स्कूल होने...

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