एडवर्ड सईद हमारी पीढ़ी के भारतीय बुद्धिजीवियों के नायक रहे हैं। एक युवा वामपंथी के नाते पूर्व पर लिखने वाले पश्चिमी विद्वानों पर उनके हमले हमें ऊर्जा देते थे। तीसरी दुनिया के देशों का समर्थक होने के नाते इजरायली अपराधों की निंदा और फलस्तीनियों के प्रति एकजुटता का उनका पक्ष हमें प्रभावित करता था। मेरे कुछ दोस्त सईद के प्रति आजीवन समर्पित रहे, हालांकि मेरा मोहभंग होने लगा था। सईद...
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कर्नाटक के विनाश की नई राह-- रामचंद्र गुहा
यह 1989 की बात है जब मैं शिवराम कारंथ से उनके दक्षिण कर्नाटक स्थित गांव सालिग्राम में मिला था। आधुनिक कन्नड़ उपन्यास के जनक, यक्षगान जैसे प्राचीन नृत्य नाटक का पुनर्पाठ प्रस्तुत करने वाले, विधवा विवाह और स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने वाले शिवराम कारंथ उन दिनों अपने प्यारे पश्चिमी घाटों को विनाश से बचाने की मुहिम में जुटे थे। 80 साल की उम्र में भी वे खासे सक्रिय रहकर...
More »निजीकरण नहीं वनों का हो कायाकल्प-- रामचंद्र गुहा
पैंतालीस साल पहले अलकनंदा घाटी के ग्रामीणों ने जब जंगल से पेड़ काटकर ले जाने वालों को रोका, तो किसी ने सोचा न होगा कि यहीं से चिपको आंदोलन की नींव पड़ने जा रही है। एक ऐसा किसान आंदोलन, जिसने भारत में वनों के व्यावसायिक दोहन पर सबका ध्यान खींचा। चिपको आंदोलन का ही यह असर था कि वनाधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी। गढ़चिरौली, बस्तर, सिंहभूम और पश्चिमी घाट सहित...
More »साम्यवाद गया पर लेनिन जिंदा हैं-- रामचंद्र गुहा
एक प्रति-तथ्यात्मक सवाल है- अगर त्रिपुरा में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माक्र्सिस्ट) ने भगत सिंह की मूर्तियां लगाई होतीं, तो क्या होता? क्या माकपा को सत्ता से बाहर कर देने के बाद भाजपाई उनके साथ भी यही सुलूक करते? एक साल पहले एक इतिहासकार मित्र, जो माकपा सदस्य भी हैं और मैं बेंगलुरु में लंच कर रहे थे। कम्युनिस्ट होने से अलग, अच्छे अध्येता, मजाकिया-हाजिर जवाब और क्रिकेट प्रेमी होने...
More »आदिवासी समाज का वह योद्धा-- रामचंद्र गुहा
जीवनी लिखने की विधा अपने यहां बहुत विकसित नहीं हो पाई है। हम जीवित लोगों की चापलूसी करना तो जानते हैं, पर गुजर चुके लोगों के बारे में अधिकार के साथ लिखने की अंतरदृष्टि विकसित नहीं कर पाए। अतीत से लेकर आज तक के नेताओं पर किताबें मिल जाएंगी, लेकिन उनमें से कुछ ही होंगी, जो साहित्य या पढ़ने लायक किताब होने की शर्त पूरी करें। गोखले पर बी आर...
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