एक सौ तीस करोड़ से अधिक की जनसंख्या के हमारे देश में हमें लगातार बताया गया है कि अधिकांश आबादी युवा है और यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है. यह तर्क मैंने 1997 के बाद से लगभग हर राजनेता को इस्तेमाल करते देखा. तब उम्मीदें आसमान तो छू रही थीं, क्योंकि वैश्वीकरण के चलते हर तरह की तरक्की का वादा हमसे हुआ था, (और कुछ हद तक वैसा हुआ भी)....
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बुनियादी सुधार तेजी से आगे बढ़ाने में राजनीतिक अड़चनें: रघुराम राजन
रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि भारत में बुनियादी सुधारों की रफ्तार को तेज करना राजनीतिक दृष्टि से मुश्किल काम है। लेकिन गवर्नर ने बैंकों के बहीखाते साफ-सुथरा करने और मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने पर जोर दिया जिससे तेज वृद्धि हासिल की जा सके। राजन ने कहा कि श्रम बाजार सुधारों से वृद्धि को प्रोत्साहन दिया जा सकता है, लेकिन इस प्रक्रिया को विरोध का सामना...
More »विश्व-व्यापार और भारत- संदीप मानुधने
सन् 1980 के पश्चात पूरे विश्व में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की ऐसी आंधी चली कि विश्व-व्यापार के सभी मानकों व मापदडों में आमूल-चूल परिवर्तन हो गया. अब किसी भी देश को यदि समृद्ध बनना था, तो यह न केवल महत्वपूर्ण था वरन अत्यावश्यक भी कि आप अपनी अर्थव्यवस्था को विश्व के साथ जोड़ें. इस हेतु भारत ने अनेक स्थानीय व्यवस्थाओं व विनियमनों में भारी परिवर्तन किये. यह अलग बात...
More »युवा, लाभांश और देश का भविष्य- संदीप मानुधने
देश में कहीं भी जाइये, चारों ओर अगर चुनौतियों के अलावा कोई और चीज साफ नजर आयेगी, तो वह है युवा! हर युवा की आंखों में एक चमक है- कोई अपना स्टार्टअप करके देश बदलने का स्वप्न देख रहा है (आखिर इस साल की ताजतरीन मिठाई जो ठहरी!), कोई विदेश जाने का (इतनी अच्छी लाइफ यहां कैसे मिलेगी!), तो कोई आइएएस बन कर प्रशासनिक क्रांति लाने का सपना देख रहा...
More »बाढ़ से ज्यादा लोग मरते हैं या ठंढ़ से ?
अगर आप मानते हैं कि बाढ़, हिमपात, भूस्खलन, महांमारी या भूस्खलन से ज्यादा लोग मरते हैं और ठंढ़ से तो कम तो तनिक ठहरिए ! नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो(एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि हर साल बाढ़ या महामारी से जितने लोग नहीं मरते उससे कहीं ज्यादा लोग ठंढ़ के कारण जान गंवाते हैं.(देखें नीचे की लिंक) एनसीआरबी की नई रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में कुल 913 लोगों ने ठंढ़ के कारण...
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