इस समय भारत के आर्थिक माहौल के बारे में दो प्रतिस्पद्र्धी कहानियां हैं। दोनों की प्रकृति भले ही एक-दूसरे से अलग हो, लेकिन हैं दोनों सही। जेपी मॉरगन के मुख्य अर्थशास्त्री साजिद जेड चिनॉय की इन्हीं पंक्तियों के साथ आज मैं अपनी बात शुरू करना चाहता हूं। चिनॉय का यह लेख 19 जुलाई को मिंट में प्रकाशित हुआ था। शीर्षक था- इंडियन इकोनॉमी : अ टेल ऑफ टू नैरेटिव्स। जिन पाठकों...
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गैरजरूरी जोखिम में डालता कृत्रिम उछाल-- अभिजीत मुखोपाध्याय
वर्ष 1991-92 के दौरान भी शेयर बाजार में असाधारण उछाल आये थे, पर बाद में यह पता चला कि ऐसा बैंकों से संबद्ध कुछ अनियमितताओं और धोखाधड़ीपूर्ण लेन-देन की वजह से हुआ था. पर संसद में इस बारे में उठाये गये कई सवालों के जवाब में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने जो कुछ कहा था, वह शेयर बाजार एवं देश की आर्थिक स्थिति के संबंधों पर जरूरत से ज्यादा...
More »मोदी का सबसे बड़ा दांव--- एन के सिंह
कल आधी रात को संसद के ‘सेंट्रल हॉल' में आयोजित एक जगमगाते कार्यक्रम में लंबे वक्त से प्रतीक्षित ‘गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स' यानी जीएसटी कानून आखिरकार वजूद में आ गया। प्रतिष्ठित ब्रिटिश अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक बड़ा (टैक्स गैंबल) दांव करार दिया है। जीएसटी के फायदे के बारे में सब जानते हैं। यह आसानी से कारोबार कर सकने की राह में खड़ी तमाम...
More »कर्जमाफी नहीं है समाधान -- देविंदर शर्मा
इस हफ्ते की शुरुआत मध्य प्रदेश के 42 वर्षीय किसान रमेश बसेने की आत्महत्या के साथ हुई। हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी खबर में बताया गया था कि उस पर 25,000 रुपये का कर्ज था। कुछ ही हफ्ते पहले महाराष्ट्र के एक किसान की 21 वर्षीया बेटी शीतल व्यंकट की आत्महत्या की भी दुखद खबर आई थी। अपनी शादी के लिए पैसे के इंतजाम को लेकर पिता की परेशानी उससे...
More »रोजगार देनेवाला एफडीआइ आये -- वरुण गांधी
भारत की अर्थव्यवस्था में एक अनोखा अंतर्विरोध दिख रहा है. बीते कुछ दशकों में, खासकर विकासशील देशों में पाया गया है कि मैक्रो इकनॉमिक्स में आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के लिए एफडीआइ रामबाण है. ज्यादा एफडीआइ आने का मतलब देश की आर्थिक नीतियों की स्वीकार्यता समझा जाता है और अर्थव्यवस्था की तंदुरुस्ती का संकेतक माना जाता है. पिछले कुछ वर्षों में स्थिर रहने के बाद बीते तीन वर्षों में...
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