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कोरोना के प्रकोप से बचने के लिए 'वर्क फ्रॉम होम' जैसे उपाय भारतीय श्रमिकों के लिए नहीं हैं मददगार

साल 2020 से पर्दा उठते ही इसके शुरुआती जनवरी महीने में चीन जैसी महाशक्ति को COVID-19 के व्यापक प्रकोप से झूझते हुए पाया, जोकि कुछ दिनों के भीतर ही वैश्विक स्तर पर फैल गया. COVID-19 की तीव्र प्रसार क्षमता के अध्ययन के बाद, स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बाकी की आबादी के बीच तेजी से इसके प्रसार को रोकने के लिए कुछ तरीके सुझाए हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इंटरनेट कनेक्टिविटी के युग...

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NRC को पूंजीवादी दृष्टि से भी देखा जाना चाहिए

एनआरसी को अभी तक सिर्फ़ कम्युनल और संवैधानिक दृष्टि से ही देखा गया है। एनआरसी पूंजीवादी के कितना काम आ सकता है, किस तरह काम आ सकता है इस पर भी एक नज़र डाल लेना चाहिए। क्योकि पूंजीवादी जब फासीवाद को अपना हथियार बना लेता है तो दमन और क्रूरता के सारे पुराने मापदंड टूट जाते हैं।इसे समझना हो तोलोकल इंटेलिंजेंस यूनिट के हवाले से लिखी गई अमर उजाला की...

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श्रमिकों की गरिमा व बिहार की अस्मिता-- मिहिर भोले

बिहार छोड़े मुझे पच्चीस वर्ष हो गये. तब से गुजरात में ही रहता हूं. फिर भी विभिन्न कारणों से लगातार बिहार आता-जाता रहता हूं. इस दौरान लोग-बाग अक्सर मुझसे गुजरात के बारे में प्रश्न किया करते हैं और मैं आदतन पूरी सच्चाई और निष्पक्षता से उसकी खूबियों और कमजोरियों की चर्चा करता हूं. चूंकि मैं राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं. मैं एक शिक्षक हूं, मेरी वैचारिक प्रतिबद्धता सिर्फ मेरे अपने अनुभव...

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अपनी जड़ों को खोजते वे भारतवंशी- बद्री नारायण

हिंदी पट्टी ने ब्रिटिश उपनिवेश काल में अनेक मुसीबतें झेलीं। इनकी दो मुसीबतें अत्यंत महत्वपूर्ण रही हैं, जिन्होंने मिलकर हिंदी क्षेत्र का वर्तमान रचा है। एक तो 1857 का विद्रोह, दूसरा गिरमिटिया विस्थापन, जिसे प्रवास, उत्प्रवास कुछ भी कहा जा सकता है। भोजपुरी के प्रसिद्ध नाटककार भिखारी ठाकुर ने इसे बिदेसिया हो जाना भी कहा है। 19वीं सदी में दास प्रथा की समाप्ति के बाद दुनिया में आक्रामक रूप से...

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आज तो आजिज हैं सब गरीब! - मृण्‍ााल पांडे

दु:ख, असहायता और राज-समाज के उत्पीड़न से भारतीय गरीबों का इतनी सदियों से रिश्ता रहा है कि वे अक्सर उसे खामोशी से सहते रहते हैं। पर हमारे यहां जनता की अनसुनी मूक व्यथा को स्वर देने वाले जनकवियों की वाल्मीकि से लेकर बाबा नागार्जुन तक एक लंबी परंपरा भी है, जिसमें नज़ीर अकबराबादी भी आते हैं। मध्यकाल में जब दिल्ली की बादशाहत उजड़ रही थी और जनता जाट, रुहेले, मराठा...

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