क्या मनरेगा को जस का तस छोड़ा जा सकता है? मनरेगा के मामले में नागरिक-संगठन आखिर इतना हल्ला किस बात पर मचा रहे हैं? क्या ग्रामीण इलाके के सामाजिक कार्यकर्ता बहुत ज्यादा की मांग कर रहे हैं? क्या यूपीए- II वह सारा कुछ वापस लेने पर तुली है जो यूपीए- I ने चुनावों से पहले दिया था? चुनौती सामने है, मनरेगा गहरे संकट में है। अरुणा राय और ज्यां द्रेज सरीखे...
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गांव वालों ने बढ़ाई महंगाई!
नई दिल्ली। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने बढ़ती महंगाई का ठीकरा ग्रामीणों के सिर फोड़ा है। उनकी दलील है कि आमदनी बढ़ने के कारण ग्रामीण अब फल, सब्जियां व दूध खरीदने लगे हैं। इससे मुद्रास्फीति की दर बढ़ी है। ग्रामीण समृद्धि के चलते ही खाद्य पदार्थो की खपत बढ़ी है। मुद्रास्फीति संबंधी आंकड़ों पर गौर करें तो अनाज की कीमतों में खास वृृद्धि नहीं हुई है। फल,...
More »मनरेगा- कहीं नरम , कहीं गरम
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना(मनरेगा) के बारे में ज्यादातर खबरें या तो उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार की होती हैं या फिर योजना की कारआमली में हो रही ढिलाई की। सरकार ने इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा पर कुल 40 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं लेकिन शहराती मध्यवर्ग का एक बड़ा तबका और जनमत-निर्माता इसी पसोपेस में हैं कि आखिर इन रुपयों से कुछ सार्थक हो भी रहा है या नहीं। नुक्ताचीनी की बातों...
More »साल के अंत तक कम होगी खाद्य मुद्रास्फीति
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शनिवार को कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति चालू वर्ष की दूसरी छमाही में कम होगी। आर्थिक वृद्धि के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के सकल घरेलू उत्पाद की दर 11वीं पंचवर्षीय योजना 2007-12 के दौरान 9.0 फीसदी के लक्ष्य के मुकाबले 8.1 फीसदी रहेगी। मनमोहन सिंह ने राज्यों से खेतीबाड़ी पर ज्यादा ध्यान देने की अपील करते हुए कहा कि महंगाई की मार...
More »बढ़ रहा है जनता में जनाक्रोश
नई दिल्ली [उमेश चतुर्वेदी]। महंगाई की आग के खिलाफ पाच जुलाई के भारत बंद पर कारपोरेट तरीके से मूल्याकन के जरिए भले ही लाख सवाल उठाए जा रहे हों, लेकिन यह सच है कि इस बंद ने महंगाई की आग से झुलस रहे अधिसंख्य भारतीयों के गुस्से और क्षोभ को ही अभिव्यक्ति दी है। इस क्षोभ और गुस्से का महत्व इसलिए कम नहीं हो जाता कि इससे तेरह हजार या बीस...
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