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जो अन्न उपजाता है वही भूखा रह जाता है : देविंदर शर्मा

खाद्य सुरक्षा विधेयक का विरोध दो कारणों से हो रहा है. एक राजनीतिक और दूसरा कॉरपोरेट घरानों या उनके समर्थक अर्थशास्त्रियों की ओर से. उनका कहना है कि खाद्यान्न सुरक्षा पर हर साल एक लाख 25 हज़ार करोड़ रुपये  खर्च होगा. इससे घाटा बढ़ेगा इसलिए इसकी कोई ज़रूरत नहीं है. खाद्यान्न सुरक्षा पर हर साल एक लाख 25 हज़ार करोड़ रु पए ख़र्च होने पर एतराज़ जताया जा रहा है....

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तू क्यों पिछड़ी लाडो!- प्रियंका कौशल

छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचलों में आज भी महिलाओं को पुरुषों से ऊंचा दर्जा दिया जाता है और इसकी शुरुआत होती है परिवार में बेटियों को तवज्जो देने से. लेकिन राज्य की राजनीति में यह तस्वीर बिल्कुल उल्टी है. प्रियंका कौशल की रिपोर्ट. राजनीति में परिवारवाद ऐसी बुराई हो चली है जिसके खिलाफ कोई मुहिम नहीं छेड़ी जा सकती. अब यदि ऐसा है तो क्या इसमें कुछ सकारात्मक पक्ष खोजा जा सकता...

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20 जिले सूखे की चपेट में

पटना: राज्य के कई हिस्सों में बुधवार को बारिश तो हुई, लेकिन जो नुकसान होना था वह हो चुका. सूखे से निबटने के लिए मुख्य सचिव अशोक कुमार सिन्हा की अध्यक्षता में गठित क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 38 में 20 जिले सूखे की चपेट में हैं. इनमें आठ जिले गया, बांका, जमुई, नालंदा, नवादा, अरवल, जहानाबाद और औरंगाबाद  में तो स्थिति विकराल है. इन जिलों में धान...

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पत्रकारिता का लाइसेंस क्यों?- उर्मिलेश

जनसत्ता 22 अगस्त, 2013 :  भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू काफी दिनों से पत्रकारिता की तुलना वकालत और डॉक्टरी आदि जैसे पेशों से करते आ रहे हैं।उनका तर्क है कि अन्य सभी पेशों के लिए कुछ न कुछ योग्यता तय है। पर पत्रकार कोई भी बन जाता है!  पांच-छह महीने पहले उनके इस आशय के बयानों पर काफी विवाद हुआ तो विस्तृत रिपोर्ट और सुझाव देने के लिए उन्होंने...

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कर्ज डकारने वालों पर कानून बेअसर

नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। फंसे कर्ज को लेकर बैंकों की मुसीबत बढ़ती जा रही है। आर्थिक मंदी की वजह से आने वाले दिनों में फंसे कर्ज यानी नॉन परफॉर्मिग असेट्स [एनपीए] के बढ़ने की आशंका बढ़ी है। वहीं, फंसे कर्जे को वसूलने की मौजूदा व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होती दिख रही है। ऋण वसूली प्राधिकरण, लोक अदालतों व अन्य तरीके से बैंक पिछले वित्त वर्ष 2012-13 में कुल फंसे कर्जे...

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