जब शादी की बात हो, तो अक्सर सुनने में आता हैं- जोड़ियां ऊपर बनती हैं. तो क्या ऊपर ही टूटती भी होंगी? लेकिन ऐसा है नहीं. विवाह पवित्र बंधन है और विवाह का टूटना एक सामाजिक कलंक मान लिया गया है. जोड़ियां बनानेवाले ने उनमें चक्रव्यूह के अभिमन्यु की तरह जाने का आसान रास्ता तो बनाया है, निकलने का नहीं. जैसे शादी में दोनों को ‘कुबूल' होना जरूरी है, लेकिन...
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संकट में वन्य जीव-- रीता सिंह
वर्ल्ड वाइल्ड फंड एवं लंदन की जूओलॉजिकल सोसायटी की हालिया रिपोर्ट चिंतित करने वाली है कि 2020 तक धरती से दो तिहाई वन्य जीव खत्म हो जाएंगे। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में हो रही जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले चार दशकों में वन्य जीवों की संख्या में भारी कमी आई है। रिपोर्ट के मुताबिक 1970 से 2012 तक...
More »नदियां अविरल बहेंगी या नहीं हमें तय करना है-- श्रीश चौधरी
ये नदियां नहीं बहेंगी, हम दशाश्वमेध, द्वारकाधीश या केशी घाट पर स्नान नहीं कर पायेंगे, उनका जल पीकर अपने शरीर के घाव एवं मन का पाप नहीं धो पायेंगे, वहां जाकर भी हम आरओ के पानी में स्नान करेंगे और बिस्लेरी ही पियेंगे, तो फिर इन मंदिरों का एवं वैशाख, कार्तिक एवं माघ महीने में वहां मास भर रहने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है. पढ़िए अंतिम कड़ी. उन्नीसवीं...
More »विकास भी चाहिए और रोजगार भी-- एन के सिंह
पिछला एक वर्ष भारत के लिए उथल-पुथल भरा रहा है। अपनी संप्रभुता, सीमाओं की सुरक्षा के साथ-साथ राष्ट्रवाद की आक्रामक अभिव्यक्तियों से उसे जूझना पड़ा है। वहीं, इस क्षेत्र की भू-राजनीति अब भी अनिश्चित और अस्थिर बनी हुई है। चीन की विकास दर घट रही है, लिहाजा अपने आर्थिक रसूख को कायम रखने के लिए वह नए-नए तरीके अपना रहा है। दक्षिण चीन सागर विवाद पर ट्रिब्यूनल के फैसले को...
More »जुगाड़ का मोहताज न बने लोकतंत्र - मृणाल पांडे
क्या इसे महज एक संयोग माना जाए कि देश की तकरीबन हर पार्टी और राजनीति में आकंठ निमग्न शीर्ष नेता के कुटुंबों के भीतर और पार्टी के असंतुष्टों के बीच की भीषण तनावमय टूट इन दिनों शर्मनाक झगड़ों में तब्दील हो-होकर चौरस्तों पर बिखर रही है? एक न एक दिन तो यह होना ही था। वजह यह कि गए कई दशकों में जवान होता लोकतंत्र हमारे बीच राजनीति से अर्थनीति...
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