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थोड़ी खुशी ज्यादा गम- ।।प्रभात पटनायक।।

भूमि अधिग्रहण और विकास के शोर में हमारी जर्जर कृषि अर्थव्यवस्था भयानक संकट का सामना कर रही है, मगर वित्तमंत्री बजट में खेती-बाड़ी पर शोध के लिए 200 करोड़ की मामूली रकम का इंतजाम करके दूसरी हरित क्रांति का सपना देख रहे हैं. वित्त वर्ष 2012-13 का बजट कई वजहों से अहम माना जा रहा है. एक तरफ़ यूपीए सरकार चुनावी हार का सामना करने के बाद सियासी मोर्चे पर घिरी हुई...

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सुधारों को नहीं मिली तेज धार ।।सुरजीत एस भल्ला।।

यूपीए सरकार की दूसरी पारी शुरू होने के कुछ महीने बाद ही लेहमैन ब्रदर्स और एआइजी जैसे बड़े नामों को ढहने के साथ ही वैश्विक आर्थिक मंदी की शुरुआत हो गयी थी. यूरोप की बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं और अमेरिका आर्थिक मंदी के भंवर से आज तक नहीं निकल पाये हैं, वहीं भारत मंदी के बाद भी आठ फ़ीसदी की विकास दर बरकरार रखने में कामयाब रहा था. यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के कहर...

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बजट स्पेशल- घोषणाओं से लहलहाएगी फसल

नई दिल्ली. कृषि क्षेत्र के लिए इस बार बजट में कई प्रावधान किए गए हैं। बजट में कृषि के लिए बजट 18 फीसदी बढ़ाकर 20,208 करोड़ किया गया है। यूरिया उत्पादन अगले पांच साल में जरूरत के अनुरूप किसानों को सीधे सब्सिडी देने के फैसले को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसके अलावा 6 महीने में 50 जिलों में कैरोसीन और खाद सब्सिडी मिलेगी। मोबाइल के जरिए 12 करोड़ किसानों...

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अन्न स्वराज- वंदना शिवा

भोजन का अधिकार जीने के अधिकार से जुड़ा हुआ है और संविधान का अनुच्छेद 21 सभी नागरिकों को जीने का अधिकार प्रदान करता है। इस लिहाज से प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक स्वागतयोग्य है। पिछले दो दशकों में भारत में भूख एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। 1991 में जब आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू किए गए थे, तब प्रति व्यक्ति भोजन की खपत 178 किलोग्राम थी, जो 2003 में...

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बीज में छिपी है खाद्य संप्रभुता- वंदना शिवा

यदि किसानों के पास अपना बीज न हो या मुक्त परागण किस्मों तक उनकी पहुंच न हों, जिसे वे सुरक्षित रख सकें या जिसका वे विनिमय कर सकें, तो उनके पास बीज संप्रभुता नहीं होगी। नतीजतन उनके पास खाद्य संप्रभुता भी नहीं होगी। गहराते कृषि एवं खाद्य संकट की जड़ें बीज आपूर्ति प्रणाली में हो रहे बदलाव और बीज विविधता व बीज संप्रभुता के क्षरण में निहित है। क्योंकि खाद्य...

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