लगातार दो कमजोर मॉनसून और लापरवाह जल-प्रबंधन के कारण देश में सूखे का संकट उत्तरोत्तर गंभीर होता जा रहा है. देश की करीब आधी आबादी सूखा और जल-संकट की चपेट में है. कई इलाकों में तो दो साल से अधिक समय से यह स्थिति व्याप्त है. अत्यंत गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों से बड़ी संख्या में ग्रामीण पलायन को मजबूर हैं. सरकारी तंत्र इस विपदा से निबटने में न सिर्फ...
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ताकि बैंकों की साख कायम रहे- एन के सिंह
हेनरी पॉलसन के मुताबिक, 'अगर कोई आर्थिक-तंत्र बिखरता है, तो फिर उसे पटरी पर लाना वाकई बहुत-बहुत मुश्किल हो जाता है।' भारत का वित्तीय क्षेत्र अभी गंभीर संकट में उलझा हुआ है। और यह संकट मुख्यत: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों, यानी एनपीए के कारण पैदा हुआ है। 31 दिसंबर, 2015 तक 24 सूचीबद्ध सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कुल एनपीए 3,93,035 करोड़ रुपये था। अगर इसमें जोखिम वाले...
More »देश भर में गर्मी की मार जारी
देश के विभिन्न क्षेत्रों में पारा 40 के पार होने के कारण लोग भीषण गर्मी से बेहाल हैं। हालत यह है कि पश्चिम बंगाल में आज तीसरे चरण के मतदान के दौरान मतदान केन्द्र के बाहर ड्यूटी पर तैनात एक सरकारी कर्मचारी की लू लगने से मौत हो गयी। ताजा पश्चिमी विक्षोभ के कारण हालांकि राजधानी दिल्ली और उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में तापमान में हल्की गिरावट आयी। मौसम विज्ञानियों...
More »वो 5 बातें जिनकी वजह से मनाना पड़ रहा है पृथ्वी दिवस
22 अप्रैल को दुनिया के 192 देश 46वां विश्व पृथ्वी दिवस मना रहे हैं। लेकिन मात्र एक दिन पृथ्वी दिवस के रूप में मना कर हम प्रकृति को बर्बाद होने से नहीं रोक सकते हैं। जीवन और पर्यावरण एक-दूसरे के पूरक हैं। पर्यावरण के बगैर जीवन असम्भव है। कोई दो राय नहीं कि अगर पृथ्वी खतरे में रहेगी तो मनुष्य जाति भी खतरे में रहेगी। दुर्भाग्यवश पृथ्वी का अस्तित्व खतरे...
More »विश्व-व्यापार और भारत- संदीप मानुधने
सन् 1980 के पश्चात पूरे विश्व में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की ऐसी आंधी चली कि विश्व-व्यापार के सभी मानकों व मापदडों में आमूल-चूल परिवर्तन हो गया. अब किसी भी देश को यदि समृद्ध बनना था, तो यह न केवल महत्वपूर्ण था वरन अत्यावश्यक भी कि आप अपनी अर्थव्यवस्था को विश्व के साथ जोड़ें. इस हेतु भारत ने अनेक स्थानीय व्यवस्थाओं व विनियमनों में भारी परिवर्तन किये. यह अलग बात...
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