वैश्विक होती अर्थव्यवस्था के दौर में समान विकास की अवधारणा मजबूत हो रही है. नीति-निर्माता से लेकर आर्थिक विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि विकास दर जरूरी है, लेकिन बिना आर्थिक असमानता को दूर किये विकास अधूरा है. इस व्यापक सोच के साथ रांची में ‘इंटरनेशनल काॅन्फ्रेस ऑन इन्क्लूसिव एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट इन झारखंड: चैलेंज एंड अपॉर्चुनिटी' विषय पर तीन दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है. पूर्वी भारत...
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हिमालय का बिगड़ता मिजाज--- ममता सिंह
हिमालय की अनदेखी शुरू से ही हो रही है। बार-बार केंद्र पर निर्भर हिमालयी राज्यों का तंत्र हिमालय की गंभीरता और हिमालय से चल सकने वाली स्थायी जीवन शैली और जीविका को भी भुलाते जा रहे हैं। आयातित परियोजनाओं ने हिमालय में अतिक्रमण, प्रदूषण और आपदा की स्थिति पैदा कर दी है जिसके फलस्वरूप हिमालय टूट रहा है। हिमालय न केवल भारत, बल्कि दक्षिण एशिया के सभी देशों के लिए जल...
More »शहरीकरण की विसंगतियां--- रमेश कुमार दूबे
शहरीकरण को लेकर सरकार का नजरिया यह है कि इस पर सियापा करने के बजाय इसे मौके के रूप में देखा जाना चाहिए। उसके मुताबिक शहरों में गरीबी दूर करने की ताकत होती है और हमें इस ताकत को और आगे बढ़ाना चाहिए ताकि आर्थिक समृद्धि का स्वत: प्रसार हो। सुख-सुविधाओं की मौजूदगी के चलते शहर सदा से मनुष्य के आकर्षण के केंद्र रहे हैं। आज की तारीख में तो ये...
More »बढ़ती महंगाई की मुसीबत - संजय गुप्त
दालों के साथ-साथ टमाटर, आलू और अन्य खाद्य पदार्थों के दामों में वृद्धि ने मोदी सरकार की चिंता बढ़ा दी है। महंगाई आम जनता को प्रभावित करने वाली सबसे बड़ी समस्या होती है, लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि मोदी सरकार दाल और सब्जियों सरीखी आवश्यक वस्तुओं की कीमत में वृद्धि का सामना उन्हीं उपायों से करती नजर आ रही है, जो विगत में असफल साबित हो चुके हैं। बात चाहे...
More »जॉब मार्केट का बदलता चेहरा-- संदीप मानुधने
हाल ही में, एक बड़ी रोचक घटना हुई. भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन संस्थान आइआइएम अहमदाबाद ने कड़ा ऐतराज जताते हुए फ्लिपकार्ट नामक एक बड़ी ऑनलाइन कॉमर्स कंपनी से अपने कैंपस से चयनित छात्रों को देरी से 'ज्वॉइनिंग' कराने पर तुरंत नौकरी पर रखने एवं बकाया वेतन देने की मांग कर डाली! देखने में यह एक संस्थान और एक निजी कंपनी के बीच का मामला लगता है, लेकिन गहराई से विश्लेषण...
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