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मानवीय गरिमा के खिलाफ--- कनिष्का तिवारी

नए साल की शुरुआत में ही हस्त आधारित मल निस्तारण की वजह से सात लोग अपनी जान गंवा बैठे। वर्ष 2017 में यदि अखबारों के आंकड़ों पर ही गौर करें तो सौ दिनों के अंतराल में सत्रह मजदूरों को इस अमानवीय कार्य में लगने के चलते अपनी जान गंवानी पड़ी। यह एक ऐसी समस्या है जो व्यक्ति की गरिमा को ठेस पहुंचाती है, साथ ही संविधान व मानवीय आचरण के...

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बोलने की आजादी बनाम बड़बोलापन-- रमेश दवे

लोकतंत्र सभ्यता, शील और मर्यादा के उत्कर्ष की सत्ता-प्रणाली है। पर कुछ वर्षों में लोकतंत्र के शील का आसन भाषण की अराजकता से गंदा किया गया है। यह सच है कि भारत के सर्वश्रेष्ठ और विश्व के सबसे बड़े संविधान ने अनेक दायित्व, मर्यादाएं, सीमाएं और अभिव्यक्ति की आजादी का नागरिक और नैतिक अधिकार भी दिया है, लेकिन बोलना अगर बड़बोलापन बन जाए, अभिव्यक्ति अगर विकृति बन जाए और संविधान...

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आधार निराधार--- तवलीन सिंह

जब भी किसी मुद्दे को लेकर दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में हल्ला मचने लगता है, तो मेरी आदत है किसी दूरदराज गांव में जाकर उसी मुद्दे पर आम, गरीब भारतवासियों से बातें करना। सो, पिछले हफ्ते जब आधार कार्ड को लेकर खूब हल्ला मचने लगा देश भर में निजता पर और पत्रकारों और टीवी एंकरों में भी खेमे बंट गए, मैं एक ऐसे गांव में जा पहुंची जहां कुछ भी...

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तनाव के कगार पर असम-- योगेन्द्र यादव

असम बारूद के ढेर पर बैठा है. वहां की पार्टियां इसमें आग सुलगाकर वोट की रोटी सेंक रही हैं. बाकी देश आंख मूंदे बैठा है या सोच रहा है कि जब विस्फोट होगा, तब देखा जायेगा. समस्या पुरानी है, लेकिन संदर्भ नया है. विदेशी अाप्रवासियों का सवाल कई दशकों से असम का नासूर बना रहा है. आजादी के बाद से ही राज्य में देश के भीतर और बाहर दोनों तरफ...

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पर्याप्त सरकारी मदद के जरिये ही पहुंच सकती हैं सभी तक स्वास्थ्य सेवाएं

भारत के विशाल और विविध भू-भागों में रहने वाली आबादी तक समुचित स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती रही है. इसमें बड़ी कमी सरकारों की रही है, जो अपने कुल बजट का महज एक फीसदी तक हिस्सा ही सार्वजनिक स्वास्थ्य मद में खर्च करती रही है. स्वास्थ्य क्षेत्र के समूच परिदृश्य समेत इससे संबंधित अन्य पहलुओं को इंगित कर रहा है आज का वर्षारंभ ... अनंत कुमार एसोसिएट प्रोफेसर,...

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