नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। दालों के आयात के लिए 5000 करोड़ रुपये और दलहन खेती के लिए औसतन सालाना केवल 500 करोड़ रुपये। समझा जा सकता है कि दालों की पैदावार क्यों नहीं बढ़ रही है। पिछले चार सालों में सरकार ने जितना धन दलहन की खेती के प्रोत्साहन के लिए दिया है, उससे दोगुना हर साल दालों के आयात पर खर्च होता है। जब खेती बेहतर करने में...
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फूलों की खेती से होंगे मालामाल
पानीपत. किसानों को फूलों की खेती से मालामाल करने के लिए बागवानी विभाग ने कवायद शुरू की है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन 2010—11 के तहत जिले में 12.5 एकड़ में गेंदे की फूलों की खेती की जाएगा। मतलौडा, इसराना, बापौली, पानीपत व समालखा ब्लाक में एक—एक हेक्टेयर पर गेंदे के फूलों की खेती का टारगेट दिया गया है। किसान का एक हेक्टेयर गेंदे के फूलों की खेती पर करीब 70 हजार...
More »जैविक कृषि पद्धति अपनाने का आह्वान
शिमला : किसानों को अब परंपरागत खेती की ओर मुड़ना ही होगा। यदि समय रहते किसानों ने पुरानी कृषि पद्धति को नहीं अपनाया तो भविष्य में इसके भयावह परिणाम भुगतने होंगे। कृषि पद्धति ही नहीं किसानों को खेती में विविधता भी लानी होगी क्योंकि अधिक रसायन के प्रयोग के कारण हिमाचल की मिट्टी से पोषक तत्व खत्म होते जा रहे हैं। विकसित देश अब भारत में की जाने वाली परपंरागत कृषि...
More »फिर भी नहीं गलती दाल
नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। जबर्दस्त समर्थन मूल्य और इसका तीन गुना बाजार मूल्य। फिर भी दलहन की खेती में दाल नहीं गल रही है। मांग व आपूर्ति के भारी अंतर कारण होने वाला जबर्दस्त मुनाफा भी किसानों को नहीं लुभा पा रहा है। पिछले पांच सालों में न्यूनतम समर्थन मूल्य [एमएसपी] दोगुना से अधिक बढ़ा है और बाजार मूल्य पांच गुना। लेकिन दलहन खेती के रकबे में मामूली वृद्धि हो पाई...
More »रोज बचा सकते हैं पांच अरब लीटर पानी
बागपत। हम चाहें तो रोज पांच अरब लीटर पानी की बचत कर बागपत की हरित धरती को रेगिस्तान में तब्दील होने से बचा सकते हैं, मगर खेतों की सिंचाई को स्प्रिंकलर सिस्टम अपनाना पड़ेगा। ऐसा हो तो फसलों की उत्पादकता भी बढ़ जाएगी। बस! जरुरत है इच्छा शक्ति और लोगों को जागरूक करने की। बागपत कृषि प्रधान जिला है जहां 1.10 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती की जाती है। सबसे ज्यादा भूजल का अति...
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