हार उपचुनाव के नतीजे और रामनवमी के बाद के घटनाक्रमों को लेकर मीडिया के एक तबके के साथ कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा बिहार सरकार की आलोचना सुर्खियों में रहीं. इस क्रम में स्थानीय शासन-प्रशासन की तथाकथित विफलता को भी खूब स्थान दिया गया, जिसमें राज्य के कुछ जिलों में हुई सांप्रदायिक झड़पों को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सुशासन व्यवस्था पर भी सवाल उठाये गये. किसी भी शासनाध्यक्ष के लिए ऐसी...
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भुखमरी के साए में-- रमेश सर्राफ धमोरा
मानव जाति की मूल आवश्यकताओं की बात करें तो रोटी, कपड़ा और मकान का ही नाम आता है। इनमें रोटी सर्वोपरि है। रोटी यानी भोजन की अनिवार्यता के बीच आज विश्व के लिए शर्मनाक तस्वीर यह है कि वैश्विक आबादी का बड़ा हिस्सा अब भी भुखमरी का शिकार है। भुखमरी की इस समस्या को भारत के संदर्भ में देखें तो संयुक्त राष्ट्र द्वारा भुखमरी पर जारी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया...
More »जाति के जाल से कर्नाटक भी नहीं बचा-- एस श्रीनिवासन
अब जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव में चंद हफ्ते रह गए हैं, तो राज्य में चुनावी गहमागहमी चरम की ओर बढ़ चली है। हालांकि कर्नाटक की आर्थिक स्थिति कई अन्य सूबों के मुकाबले बेहतर है, फिर भी इसकी अपनी कुछ समस्याएं तो हैं ही। राज्य में खेती-किसानी काफी दबाव में है। इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि साल 2012 से 2017 के बीच वहां 3,500 से अधिक किसानों...
More »राह दिखाता केरल मॉडल-- सुभाष गताडे
सत्तर के दशक में केरल का सामाजिक-आर्थिक विकास का माॅडल पूरी दुनिया में सूर्खियां बना था. केरल के लोगों के जीवनस्तर में बढ़ोत्तरी (जो सामाजिक सूचकांकों में प्रतिबिंबित हो रही थी) कई विकसित देशों के बराबर थी, जबकि राज्य की प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम थी. इसने पश्चिमी अर्थशास्त्रियों को अंचभित किया था और इसे केरल माॅडल कहा गया था. दिलचस्प बात है कि इन दिनों केरल के दूसरे ‘माॅडल'...
More »निजीकरण नहीं वनों का हो कायाकल्प-- रामचंद्र गुहा
पैंतालीस साल पहले अलकनंदा घाटी के ग्रामीणों ने जब जंगल से पेड़ काटकर ले जाने वालों को रोका, तो किसी ने सोचा न होगा कि यहीं से चिपको आंदोलन की नींव पड़ने जा रही है। एक ऐसा किसान आंदोलन, जिसने भारत में वनों के व्यावसायिक दोहन पर सबका ध्यान खींचा। चिपको आंदोलन का ही यह असर था कि वनाधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी। गढ़चिरौली, बस्तर, सिंहभूम और पश्चिमी घाट सहित...
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