भारत में कुल कृषि-भूमि का तकरीबन 45 फीसद हिस्सा सिंचित-भूमि की श्रेणी में आता है और इस भूमि के 50 फीसदी हिस्से पर सिंचाई भूमिगत जल के दोहन से होती है। ग्रामीण इलाके में पेयजल की कुल खपत में 85 फीसदी की हिस्सेदारी भूमिगत जल की है लेकिन वे दिन दूर नहीं जब पानी का यह संसाधन दुर्लभ हो जाएगा। समझदारी इसी में है कि भूमिगत जल को साझे की...
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उत्तराखंड की चेतावनी- अपूर्व जोशी
जनसत्ता 26 जून, 2013: उत्तराखंड में आई भारी विपदा पर लिखने बैठा, तो एकाएक बाबा नागार्जुन याद आ गए, अपनी एक कविता के जरिए- ताड़ का तिल है/ तिल का ताड़ है/ पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है/ किसकी है जनवरी/ किसका अगस्त है/ कौन यहां सुखी है/ कौन यहां मस्त है/ सेठ ही सुखी है। सेठ ही मस्त है/ मंत्री ही सुखी है/ मंत्री ही मस्त है/...
More »झोपड़पट्टी पुनर्वास योजना पर जन आयोग रिपोर्ट जारी- एनएपीएम
मुंबई, जून २४: न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी. न . देशमुख, उच्च न्यायलय, औरंगाबाद के द्वारा झोपर्पत्ति पुनर्वास योजना पर जन आयोग रिपोर्ट आज लोकार्पित किया गया| योजना में शामिल कुछ हजार झुग्गीवासियो के द्वारा की गयी अनियमितता की शिकायतों पर पूर्ण जाँच के लिए इस इस आयोग का गठन जन आन्दोलनो के राष्ट्रीय समन्वय द्वारा किया गया था| आयोग का गठन इसलिए भी किया गया क्योंकि महाराष्ट्र सरकार न्यायमूर्ति सुरेश...
More »आपदा का खोखला प्रबंधन!
उत्तराखंड में प्रकृति की विनाशलीला शायद कम हो सकती थी, अगर समय रहते इससे निबटने के लिए जरूरी इंतजाम कर लिये गये होते. लेकिन सीएजी की रिपोर्टो और नागरिक समाज द्वारा दी जानेवाली चेतावनियों के बावजूद भी सरकार नहीं चेती. कैसे काम करता है हमारा आपदा प्रबंधन तंत्र, आपदाओं का सफलतापूर्वक सामना करने में क्यों चूक जाते हैं हम, बता रहा है नॉलेज.. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि हमलोग...
More »उत्तराखंड के सबक- रोहित जोशी
जनसत्ता 21 जून, 2013: पिछले सालों में बरसात का मौसम उत्तराखंड के लिए तबाही का मौसम साबित हुआ है। अबके मानसून की पहली बारिश ही उत्तरकाशी, केदारनाथ, रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और बागेश्वर में बादल फटने, बाढ़ और भूस्खलन का मंजर लेकर आई है। जबकि अभी बरसात का पूरा मौसम बाकी है। यों तो आंख मूंद कर इन आपदाओं को सिर्फ प्राकृतिक माना जा सकता है और आपदा-राहत में...
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