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ऐसे हो सकता है देश की जीडीपी में 27 फीसद का इजाफा !

दुनिया में 86 करोड़ 50 लाख महिलाएं अर्थव्यवस्था में योगदान के बावजूद बिना कमाई के जीवन गुजारने को बाध्य हैं। इस तादाद का 94 फीसद विकासशील देशों में है जबकि 6 फीसद विकसित देशों में। साल 2020 तक अर्थव्यवस्था से बाहर जीवन बिताने वाली महिलाओं की तादाद तकरीबन 1 अरब यानी भारत या फिर चीन की कुल आबादी के बराबर हो जाएगी। क्या अर्थव्यवस्था से बाहर जीवन बिताने को बाध्य महिलाओं की यह तादाद आर्थिक...

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आंदोलनों से सीखा जिंदगी का ककहरा- गुंजेश की रिपोर्ट

1951 के आसपास जब जयपाल सिंह और उनकी झारखंड पार्टी आदिवासियों के लिए भारतीय संघ के भीतर स्वायत्तता का रास्ता ढूंढ़ रहे थे, उसी वक्त पूर्वोत्तर भारत में नगाओं का अतिवादी समूह अलग राष्ट्र के सपने देख रहा था. ऐसे समय में हजारों मील दूर पंजाब की फरीदकोट छावनी में एक फौजी परिवार के यहां एक लड़की ने जन्म लिया. 1964-68 में यह लड़की परिवार के साथ शिलांग पहुंचती है. जहां फौजी...

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फिर अहम होता व्यवस्था परिवर्तन का मुद्दा- प्रो आनंद कुमार

आज देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ और व्यवस्था परिवर्तन की बात फिर चल रही है. लेकिन, जब कभी इस तरह के आंदोलनों की बात छिड़ती है, तो बरबस लोकनायक जयप्रकाश नारायण का चेहरा व चिंतन हमारे जेहन में आता है. अमूमन जेपी की शख्सीयत को सत्तर के दशक में उनके द्वारा दिये गये संपूर्ण क्रांति के नारे में ही समेटने की कोशिश होती है. सच यह है कि जेपी ने इस देश...

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पेशेवर दक्षता बनाम संघर्ष- अनिल चमड़िया

जनसत्ता 17 अक्टुबर, 2012: भूमंडलीकरण का दौर शुरू होने के बाद, कई दूसरे कामों में लगे लोगों का राजनीति में वर्चस्व बढ़ा है। राजनीति में पहले किसी राजनीतिक संगठन का कार्यकर्ता होने की शर्त होती थी। अलबत्ता कुछेक दूसरे पेशों के लोग भी राजनीति में अपना प्रभाव रखते थे। इनमें खासकर वकील होते थे। लेकिन उनकी राजनीतिक सक्रियता कार्यकर्ताओं और राजनीतिक संस्कृति के दबाव में रहती थी। राजनीतिक संस्कृति से तात्पर्य उस...

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हमारे लोकतंत्र का संकट- शिवदयाल

जनसत्ता 16 अक्टुबर, 2012: दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, सवा अरब लोगों का। छह-सात प्रतिशत की दर से बढ़ती अर्थव्यवस्था। पर इसकी अधिकांश आबादी को अब तक ‘ट्रिकल डाउन’ यानी अमीरों के उपभोग से रिस कर मिलने वाले लाभ का ही आसरा है। छीजते जाते संसाधन, बिगड़ता जाता पर्यावरण, जलावतनी और विस्थापन, एक-दूसरे को काटती और खारिज करती पहचानें, लगभग एक-तिहाई से भी अधिक भूभाग सैन्यबलों के भरोसे, और इतने पर भी धन...

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