कौन स्त्री कितना गहना पहन या रख सकती है, यह स्त्री या उसका परिवार नहीं, सरकार तय कर चुकी है। भारत सरकार ने नोटबंदी की प्रक्रिया के दौरान घबराई हुई जनता का डर दूर करने के लिए सन 1994 से स्वर्ण और आभूषण रखने को लेकर चले आ रहे नियमों को पुन: पुष्ट कर इस ओर नई बहस की शुरुआत कर दी है। इस घोषणा की जरूरत नहीं थी, लोग...
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शीर्ष संस्थाओं में उचित नहीं टकराव - अरविंद मोहन
देश इस समय नोटबंदी के फैसले से उपजी नकदी की अपर्याप्त उपलब्धता की समस्या से जूझ रहा है और शासन के दो अंग- कार्यपालिका तथा न्यायपालिका अपने अहं की लड़ाई में लगे हैं। इसका एक दौर तो दीपावली के आसपास हुआ था, पर एक दौर अभी-अभी बीता है। हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली के तहत दरअसल जिन नामों को जज बनाने की सिफारिश की गई...
More »नदियां अविरल बहेंगी या नहीं हमें तय करना है-- श्रीश चौधरी
ये नदियां नहीं बहेंगी, हम दशाश्वमेध, द्वारकाधीश या केशी घाट पर स्नान नहीं कर पायेंगे, उनका जल पीकर अपने शरीर के घाव एवं मन का पाप नहीं धो पायेंगे, वहां जाकर भी हम आरओ के पानी में स्नान करेंगे और बिस्लेरी ही पियेंगे, तो फिर इन मंदिरों का एवं वैशाख, कार्तिक एवं माघ महीने में वहां मास भर रहने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है. पढ़िए अंतिम कड़ी. उन्नीसवीं...
More »आंकड़ों से बाहर अलक्षित स्त्री-श्रम-- सुजाता
पुरानी बॉलीवुड फिल्मों में मां के किरदार को याद करते हुए अक्सर एक चेहरा निरूपा राय जैसी मां का सामने आता है, जो विधवा है, दुखी है, लेकिन स्वाभिमानी है. पति के न रहने पर वह दिन-रात दूसरों के कपड़े सिल कर अपने बच्चों को बड़ा करती है. अचानक यह एहसास होता है कि दुनिया का सारा कारोबार पुरुष के श्रम पर चलता है और स्त्री इसमें केवल मर्द के...
More »हम किसे गरीब माने-- अवधेश कुमार
हमारे-आपके लिए कौन गरीब है इसे अपने आसपास पहचानना कठिन नहीं है। लेकिन जब सरकार की ओर से गरीबों की औपचारिक पहचान की बात आती है तो समस्या बढ़ जाती है। वास्तव में भारत में कौन गरीब है इसके निर्धारण का प्रश्न एक जटिल पहेली की तरह हमारे सामने लंबे समय से खड़ा है। गरीबी तय करने को लेकर समय-समय पर कुछ मानक निर्धारित किए गए और उनके आधार पर...
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