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अभी से बचाइए बूंद-बूंद पानी...

रायपुर। छत्तीसगढ़ के लोगों को अभी से ही बूंद-बूंद पानी बचाने की जरूरत है। वजह यह है कि राज्य के अधिकतर बड़े बांध और जलाशय आधे से ज्यादा खाली हो चुके हैं। आने वाले महीने फरवरी से लेकर जून के पहले पखवाड़े तक सतह का जल स्तर बढ़ने की कोई संभावना नहीं है। प्रदेश में औसतन 1150 मिमी बारिश होती है, लेकिन इस साल औसत से 15 फीसदी कम बारिश हुुई...

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डीबीटी का कमाल, सीधे बैंक में पहुंची राहत

तमिलनाडु में बाढ़ के 32 दिन बाद बांट दी गयी 700 करोड़ की राहत वर्ष 2015 जाते-जाते तमिलनाडु के कई जिलों को बाढ़ का ऐसा दर्द दे गया, जिसे बाढ़ पीड़ित आसानी से नहीं भूल पायेंगे. लेकिन, वर्ष 2016 की शुरुआत ने उन्हें ऐसी खुशी दी, जिसकी उन्होंने कल्पना नहीं की थी. बाढ़ पीड़ितों को महज 32 दिन में मुआवजा मिल गया. यह संभव हो पाया एक योजना से,...

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राजस्थान से ज्यादा सूखा असम में-- नई रिपोर्ट

‘ एक समंदर ने हंसकर कहा हमें पानी पिला दीजिए '-यह सिर्फ कविता की पंक्ति नहीं बल्कि देश के पूर्वोत्तर के हिस्से के लिए अब एक सच्चाई है.   एक नये अध्ययन में सामने आया है कि भरपूर बारिश के लिए मशहूर पूर्वोत्तर में शुष्क और अर्द्ध-शुष्क करार दिए गए पश्चिमी भारत की तुलना में सूखा पड़ने की आशंका दोगुना ज्यादा है.(देखें लिंक)   अध्ययन के अनुसार साल 2000 से 2014 के बीच 15...

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पानी के लिए मचेगा हाहाकार

जलवायु परिवर्तन का भारत में भी दिखने लगा प्रभाव पर्यावरण संरक्षण पर आयोजित सेमिनारों में लंबे-चौड़े भाषण देकर लोग अपने काम की इतिश्री कर लेते हैं. लेकिन, व्यावहारिक जीवन में अपनी ही कही बात पर अमल नहीं करते. इसी का नतीजा है कि प्राकृतिक संपदा और तीन प्रकार के मौसम चक्र से परिपूर्ण भारत भी जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से जूझ रहा है. वनों की अंधाधुंध कटाई, नदियों का विनाश, औद्योगिक...

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चेन्नई बाढ़ : एक मानव निर्मित त्रासदी

चेन्नई की बाढ़ जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों का एक भयावह उदाहरण तो है ही, इससे हुई तबाही ने मानव समाज की खतरनाक गलतियों के नतीजों को भी रेखांकित किया है.  हाल के वर्षों में उत्तराखंड, कश्मीर समेत देश के विभिन्न इलाकों में बाढ़ की त्रासदी का कहर लगातार बढ़ा है. तेज शहरीकरण और विकास की आपाधापी में सरकार और समाज प्राकृतिक तंत्रों को बेतहाशा बरबाद कर रहे हैं. नदियां...

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