-आउटलुक, “मंदी के दुश्चक्र से, देश की अर्थव्यवस्था किसान की हालत सुधरने से ही निकलेगी, लेकिन खेती-किसानी की आय में इजाफे के लिए सरकारी बैसाखी नाकाफी, किसानों की संगठित पहल जरूरी” हाल में आए देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के ताजा आंकड़ों के मुताबिक चालू साल की तीसरी तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर 4.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है, जो सात साल में सबसे...
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सामाजिक असमानताओं के कुचक्र में फंसा 'डिजीटल इंडिया' का सपना
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) की एक हालिया रिपोर्ट डिजिटल डिवाइड और भारत के कैशलेस अर्थव्यवस्था बनने के विरोधाभास को उजागर करती है. नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस) की ‘भारत में शिक्षा पर घरेलू सामाजिक उपभोग के प्रमुख संकेतक, जुलाई 2017 से जून 2018' नामक रिपोर्ट में कंप्यूटर और इंटरनेट की उपयोगिता के मामले में ग्रामीण-शहरी विभाजन काफी स्पष्ट दिखता है. शिक्षा पर 75वें दौर के नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस) की...
More »भाजपा शासित राज्यों समेत कई प्रदेशों ने की थी एमएसपी बढ़ाने की सिफ़ारिश, केंद्र ने ठुकराया
संसद का बजट सत्र शुरु होने से पहले बीते 31 जनवरी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद के संयुक्त अधिवेशन में अपने अभिभाषण में कहा कि केंद्र सरकार किसानों को लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने के लिए समर्पित भाव से काम कर रही है. उन्होंने कहा कि खरीफ और रबी की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में लगातार की गई वृद्धि इसी दिशा में उठाया गया कदम है....
More »नरेगा संघर्ष मोर्चा 2020-21 में नरेगा के लिए पर्याप्त बजट की मांग करता है
जैसे कि भारतीय अर्थव्यवस्था दुर्बल हो रही है, सरकार राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) के कामकाज में सुधार के लिए हाल ही में नोबेल पुरुस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी सहित कई प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों द्वारा दी गई सलाह को नज़रअंदाज़ कर रही है। अर्थव्यवस्था को एक के बाद एक झटके लग रहे हैं। भारत में वर्तमान समय में पिछले 45 वर्षों में सर्वाधिक बेरोजगारी की दर हैऔर खाद्य मुद्रास्फीति नवंबर 2019 में दो अंको पर पहुंच गई है , जो पिछले 71 महीनो में सर्वाधिक है । सरकार के स्वयं...
More »राजनीतिक दलों की बढ़ती वित्तीय आय में अपारदर्शी चुनावी चंदा
साल 2019 बीतते-बीतते प्रमुख राजनीतिक दलों की वित्तीय आय और इलेक्टोरल बॉन्ड यानि चुनाव में चंदे की नई व्यवस्था से जुड़ी कई खबरें और चर्चाएं सुनने को मिलीं. लोकतंत्र की बेहतरी के लिए काम करने वाली कई संस्थाओं ने और पत्रकारों ने आरटीआइ कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर चुनावी चंदा लेने के इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे अपारदर्शी तंत्र पर सवालिया निशान खड़े किए. इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने की मांग...
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