उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दूर-दराज़ कोने में बसी हुई, शोर-ग़ुल और चहल-पहल भरी करावलनगर की बस्ती, अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों का एक उभरता हुआ केन्द्र है, जहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर और उनके परिवारों को रोज़गार मिलता है। ये उद्यम किसी भी मानक से छोटे नहीं है। वैश्विक सम्बन्धों की जटिल श्रृंखला में बँधे ये उद्यम, सालभर चालू रहते हैं और हज़ारों मज़दूरों के रोज़गार का स्रोत हैं। कई करोड़...
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मुखिया को ठेकेदार मत बनाइए- टी आर रघुनंदन से प्रभात खबर के पुष्यमित्र की बातचीत
इन दिनों देश के प्रशासनिक ढांचे में आमूल-चूल बदलाव लाने की कोशिश की जा रही है. सैद्धांतिक रूप से यह मान लिया गया है कि प्रशासन का ब्रिटिश ढांचा भारतीय परिस्थिति में नहीं सफल हो रहा. महात्मा गांधी ने जो गांवों के सरकार की कल्पना की थी वही देश को ढंग से चलाने का कारगर तरीका हो सकता है. इसके लिए कई सालों से विकेंद्रीकरण की कोशिशें की जा रही...
More »करावलनगर की वॉकर फ़ैक्ट्रियों में मज़दूरों के हालात
उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में करावलनगर के औद्योगिक इलाके और उससे लगे क्षेत्र में वॉकर (छोटे बच्चों को चलने में मदद करने वाली साइकिल) और पालना बनाने वाली 14-15 छोटी-छोटी फ़ैक्ट्रियाँ हैं। ज़्यादातर फ़ैक्ट्रियों में 10-15 मज़दूर और कुछ में 30-40 मज़दूर काम करते हैं। ज़्यादातर फ़ैक्ट्रियाँ दलित बस्ती में हैं, कुछ करावलनगर गाँव, पंचाल विहार और दयालपुर में स्थित हैं। इनमें काम करने वाले ज़्यादातर मज़दूर झारखण्ड, बिहार और उत्तर प्रदेश से आये प्रवासी...
More »विस्फोटक है श्रम कानून- अमिताभ घोष
एक एचपी बीपीओ कर्मचारी की 13 दिसंबर 2005 को कंपनी की लीज वाली कार के ड्राइवर द्वारा बलात्कार और हत्या की घटना काफी दुखद थी. कंपनी के शेयरधारकों और निदेशकों को व्यक्तिगत तौर पर इसके लिए जिम्मेवार ठहराना तर्क से परे नहीं था, हां अप्रत्याशित जरूर था. दूसरी घटना में ठेकेदार या कंपनी द्वारा कर्मचारियों के प्रोविडेंट फंड में गड़बड़ी के कारण कंपनी के चेयरमैन का पासपोर्ट जब्त कर लिया...
More »उन्नींदा कानून, हरियाली का खून- पुष्कर सिंह रावत
न नियमों की परवाह और न नैतिकता का बंधन। उन्नींदे कानून के साए में ही हरियाली का खून हो गया। विकास की आड़ में विनाश का यह खेल हुआ उत्तरकाशी जिले के डुण्डा ब्लाक में। सड़क निर्माण के दौरान निकला मलबा वहीं जंगल में उड़ेल दिया गया। बोल्डर (चट्टान से टूटे बड़े पत्थर) और मलबे के नीचे कुचले हुए सौ से ज्यादा हरे-भरे पेड़ों की कराह सरकारी महकमों को नहीं...
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