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सत्ता का संदेश- जय किसान जवान-- मुकेश भारद्वाज

आजादी के बाद भूमि सुधार की बात तो हुई लेकिन यह किसी पार्टी के एजंडे में नहीं रहा। विषमताओं और गैरबराबरी वाले भारत में इस बुनियादी मुद्दे को भुला महाजनों और मानसून पर निर्भर किसानों को विश्व बाजार के मंच पर अकेला छोड़ दिया गया। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर सभी सरकारें चुप हैं। जब लोगों के जीने-मरने का सवाल पैदा हो रहा हो तो उनके सामने नोटबंदी और डिजिटल...

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रोजी बनाम राम- एकै साधे सब सधे--- मुकेश भारद्वाज

सरकार के हर मंच से नोटबंदी को सही बताने के बाद 2016-17 की चौथी तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद दर घट कर 7.1 से 6.1 फीसद पर आ गई। बाजार में तरलता की कमी से मांग घटी और छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई। अब जबकि जीएसटी के अमल का समय नजदीक आ रहा है, सरकार जमीनी सच्चाई को नकारते हुए कमजोर अर्थव्यवस्था का ठीकरा...

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मोदी सरकार के तीन साल-- योगेन्द्र यादव

नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल के तीन बुनियादी सच हैं. इनमें से किसी भी सच से मुंह चुराना यानी आज हमारे देश की राजनीति से मुंह चुराना है. पहला सच है: नरेंद्र मोदी आज पूरे देश में लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं. दूसरा सच है: नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता उनके कामों और उपलब्धियों के कारण नहीं है, बल्कि उनकी छवि पर आधारित है. तीसरा सच है: मोदी की छवि कुछ तो...

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आबादी और रोजगार की कशमकश -- मोंटेक सिंह अहलूवालिया

नौकरियों के सृजन की चुनौती पूरी दुनिया में राजनीति के केंद्र में है, और भारत भी इससे अछूता नहीं है। हालांकि, भारत में इस समस्या के पैमाने को आंकना कोई आसान काम नहीं है। हाल ही में जारी साल 2011-12 के नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस) के आंकड़े बताते हैं कि देश की कुल श्रम-शक्ति के बरक्स बेरोजगारी दर महज 2.2 फीसदी थी, जो काफी मामूली है। इस लिहाज से अन्य...

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भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें-- मोनिका शर्मा

नीति आयोग के सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की ग्यारहवीं इंडिया करप्शन स्टडी-2017 की रिपोर्ट में सामने आया है कि भ्रष्टाचार का जाल आज भी आम आदमी के लिए मुसीबत बना हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल इकतीस फीसद लोगों को स्कूल, अदालत, बैंक या अन्य कामों के लिए दस रुपए से लेकर पचास हजार रुपए तक की रिश्वत देनी पड़ी है। आंकड़े बताते हैं कि 2005 में तिरपन...

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