एक रिपोर्ट के अनुसार 15वीं लोकसभा में 315 सांसद ऐसे हैं जो करोड़पति हैं. जबकि 14वीं लोकसभा में ऐसे सांसदों की संख्या 156 थी. 14वीं से 15वीं लोकसभा तक आते आते ऐसे सांसदों की संख्या में करीब 102 प्रतिशत की वृद्धि हो गई. इन सांसदों में वैसी पृष्ठभूमि के सांसद गुम हो रहे हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों से ताल्लुक रखते थे. कॉरपोरेट क्षेत्र से जुड़े और करोड़पति सांसदों से इतर...
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गांव-पंचायत की उपेक्षा से कमजोर होगा लोकतंत्र- प्रो बी एन पटनायक
एक रिपोर्ट के अनुसार 15वीं लोकसभा में 315 सांसद ऐसे हैं जो करोड़पति हैं. जबकि 14वीं लोकसभा में ऐसे सांसदों की संख्या 156 थी. 14वीं से 15वीं लोकसभा तक आते आते ऐसे सांसदों की संख्या में करीब 102 प्रतिशत की वृद्धि हो गई. इन सांसदों में वैसी पृष्ठभूमि के सांसद गुम हो रहे हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों से ताल्लुक रखते थे. कॉरपोरेट क्षेत्र से जुड़े और करोड़पति सांसदों से इतर ऐसी...
More »कहां खो जाते हैं महिलाओं के मुद्दे - रंजना कुमारी
मैं दिल्ली से उत्तर प्रदेश के अपने एक गांव में वोट डालने गई थी। वहां अब भी बहुत ज्यादा विकास नहीं हुआ है। मगर एक अच्छी बात जरूर दिखी कि घरों से महिलाएं वोट डालने के लिए अकेली निकल रही थीं। पहले ज्यादातर वे परिवार की भीड़ का हिस्सा बनकर पोलिंग बूथों तक पहुंचती थीं, लेकिन इस बार वे अपने बच्चे का हाथ थामकर मतदान की कतारों में खड़ी थीं।...
More »बचपन पर मंडराता अंधेरा- पत्रलेखा चटर्जी
नरेंद्र मोदी के बाल विवाह के मुद्दे की वजह से इस सामाजिक बुराई के मद्देनजर हमारे राजनीतिक वर्ग का अस्पष्ट रुख एक बार फिर सामने आया है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के चारों ओर फैले चुनावी कोलाहल के माहौल में बाल विवाह पर सार्थक बहस का अभाव काफी खलने वाला है। भारत में राजनीतिक दल कन्याओं के अधिकारों पर जोर-शोर से बातें करते हैं। भाजपा...
More »चुनावी घोषणापत्रों में नजरंदाज होते बच्चे - क्षमा शर्मा
कई साल पहले दुनिया के बच्चों की स्थिति का आकलन करते हुए यूनिसेफ ने कहा था कि बच्चे वोट नहीं दे सकते, इसलिए कोई उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं देता। अब जब आम चुनाव सामने है, तो इसे अच्छी तरह समझा जा सकता है। सारे दल दलितों, महिलाओं, पिछड़ों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए लगभग हर रोज कुछ-न-कुछ कह रहे हैं, मगर वे बच्चों और किशोरों को भूल गए हैं।...
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