-न्यूजलॉन्ड्री, कोरोना महामारी के लगातार बढ़ते प्रभाव के कारण एक ओर देश की सामाजिक आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति बद से बदतर बनती जा रही है तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भरता की घोषणा के द्वारा जनता के प्रति कई जवाबदेहियों से अपने को मुक्त कर लिया है जिसके चलते सभी क्षेत्रों में घोर निराशा का वातावरण छाया हुआ है. आर्थिक मोर्चे पर गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले तथा...
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मनरेगा जरूरी या मजबूरी-7: शहरी श्रमिकों को भी देनी होगी रोजगार की गारंटी
-डाउन टू अर्थ, 2005 में शुरू हुई महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना एक बार फिर चर्चा में है। लगभग हर राज्य में मनरेगा के प्रति ग्रामीणों के साथ-साथ सरकारों का रूझान बढ़ा है। लेकिन क्या यह साबित करता है कि मनरेगा ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है या अभी इसमें काफी खामियां हैं। डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है, जिसे एक सीरीज के तौर...
More »गरीबों की फिक्र करो
-आउटलुक, महज कुछ महीनों में ही कोविड-19 की महामारी ने समूची दुनिया में उथल-पुथल ला दी। दुनिया भर की सरकारें इस पर काबू पाने मे जुटी हुई हैं। इस संकट में बेरोजगारी बढ़ी है और खाने-पीने और आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई भी बाधित हुई। पूरी दुनिया पर आर्थिक मंदी के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में लोगों का निराश होना स्वाभाविक है। फिर भी यह वक्त मानव जीवन-शैली पर चिंतन...
More »एक नागरिक के तौर पर प्रवासी
-न्यूजक्लिक, हम अपने देश के इतिहास में सबसे डरावनी घटना के गवाह बने हैं। इस डरावनी घटना को एक राज्य से दूसरे राज्यों में अपने घरों में वापस लौटते मज़दूरों के दृश्य बयां कर रहे हैं। अनुमान है कि लॉकडाउन के चलते 2,71,000 फैक्ट्रियों और साढ़े छ: से सात करोड़ लघु और सूक्ष्म धंधे रुक गए, जिसके चलते करीब़ 11 करोड़ चालीस लाख नौकरियां चली गईं। इसमें 9 करोड़ 10 लाख...
More »लॉकडाउन से पैदा आर्थिक संकट से बढ़ रहीं आत्महत्याएं
-कारवां, 22 जून को उत्तर प्रदेश के आगरा शहर के जगदीशपुर इलाके के रहने वाले 53 साल के रघुवीर सिंह ने आत्महत्या कर ली. सिंह ने अपने सुसाइड नोट में लिखा, “हमारे पास में 25000 रुपए की नकदी थी लेकिन लॉकडाउन के वक्त घर में खाली बैठे-बैठे वह खत्म हो गई. इसके बाद हम क्या करते? इस आर्थिक तंगी से परेशान होकर मैं अपनी जिंदगी खत्म कर रहा हूं.” सिंह के...
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