लाखों महिलाएं, पुरुष और बच्चे आज भी उन अपमानजनक सामाजिक बेड़ियों में बंधे हुए हैं, जो उनके जन्म से ही उन पर लाद दी गई थीं। आधुनिकता की लहर के बावजूद आज भी भारत के दूरदराज के देहातों में जाति व्यवस्था जीवित है। यह वह व्यवस्था है, जो किसी व्यक्ति के जाति विशेष में जन्म लेने के आधार पर ही उसके कार्य की प्रकृति या उसके रोजगार का निर्धारण कर...
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मेहनतकश की मजदूरी का सवाल : हर्ष मंदर
‘खेतों और फैक्टरियों में काम करने वाले हर मजदूर और कामगार को कम से कम इतना अधिकार तो है ही कि वह इतनी मजदूरी पाए कि अपना जीवन सुख-सुविधा से बिता सके..।’ वर्ष 1929 के लाहौर अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण दे रहे जवाहरलाल नेहरू ने यह बात कही थी। इसके नौ दशक बाद स्वतंत्र भारत की केंद्र सरकार ने कहा कि लोककार्य के लिए कानून द्वारा स्थापित न्यूनतम मजदूरी का भुगतान...
More »पूरा गांव बीमार, खेत में हो रहा इलाज-अब तक सात मरे
| दो दिनों में सोनुवा के एक गांव में डायरिया से सात लोगों की मौत हो चुकी है. पूरा गांव तबाह है. इलाज के लिए खुद चिकित्सक नहीं गये. मरीजों को खेत में बांस की बल्ली पर बोतल रख कर स्लाइन चढ़ायी जा रही है. न एंबुलेंस पहुंची है और न ही चलंत चिकित्सा की सुविधा. करोड़ों की चिकित्सा बसें बेकार पड़ी हैं. यह है झारखंड में चिकित्सा सेवा का हाल. || 2800...
More »ग्रीन हाउस गैसें, हम दूसरे नंबर पर : डूंगर सिंह राजपुरो
जयपुर. वाहनों, एसी, रेफ्रिजरेटर, उद्योगों से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसों (हानिकारक) की सूची में जयपुर देश में काफी आगे है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एन्वायरनमेंट एंड डवलपमेंट की हाल ही जारी रिपोर्ट के अनुसार जयपुर में प्रति व्यक्ति सालाना ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 1.63 टन है, जो गुड़गांव को छोड़कर सर्वाधिक है। हालांकि इसमें मुंबई की स्थिति का अध्ययन नहीं किया गया है। जयपुर में हर साल करीब 56 लाख टन ग्रीन...
More »गेहूं भंडारण का प्रबंधन फिफ्टी-फिफ्टी - अश्विनी शर्मा, करनाल
धरती को मेहनत से सींचकर एक-एक दाना उगाने वाले किसान बरसात में गेहूं को भीगते हुए देखकर रुआसा हो जाते हैं। उचित भडारण न होने से जुंडला में हजारों क्विंटल गेहूं बरसात में भीग गया, तो इंद्री में हजारों क्विंटल गेहूं में सुरसुरी लग गई। राहत की बात यह है कि असंध, घरौंडा, करनाल, नीलोखेड़ी आदि छोटी मंडियों से खरीदे गए गेहूं का उचित भंडारण होने से बरसात की मार...
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