भूमंडीलकरण-उदारीकरण के इस काल में अचानक एनजीओ या सिविल सोसाइटी समूहों की बाढ़ आना और वह भी शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, परिवहन और भोजन के मुद्दों पर थोड़ा शक पैदा करता है. खासकर, डब्ल्यूएसएफ की उस पूरी प्रक्रिया के बाद जो कहता था- “एक और दुनिया संभव है.” WSF इस असंभव को संभव बनाया है पीपीपी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के उस मॉडल ने, जो न सीधा निजीकरण है न पूंजीवाद और न...
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साल के अंत तक कम होगी खाद्य मुद्रास्फीति
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शनिवार को कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति चालू वर्ष की दूसरी छमाही में कम होगी। आर्थिक वृद्धि के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के सकल घरेलू उत्पाद की दर 11वीं पंचवर्षीय योजना 2007-12 के दौरान 9.0 फीसदी के लक्ष्य के मुकाबले 8.1 फीसदी रहेगी। मनमोहन सिंह ने राज्यों से खेतीबाड़ी पर ज्यादा ध्यान देने की अपील करते हुए कहा कि महंगाई की मार...
More »विद्रोह के केंद्र में दिन और रातें
जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता और ईपीडब्ल्यू के सलाहकार संपादक गौतम नवलखा तथा स्वीडिश पत्रकार जॉन मिर्डल कुछ समय पहले भारत में माओवाद के प्रभाव वाले इलाकों में गए थे, जिसके दौरान उन्होंने भाकपा माओवादी के महासचिव गणपति से भी मुलाकात की थी. इस यात्रा से लौटने के बाद गौतम ने यह लंबा आलेख लिखा है, जिसमें वे न सिर्फ ऑपरेशन ग्रीन हंट के निहितार्थों की गहराई से पड़ताल करते हैं, बल्कि माओवादी...
More »प्राथमिकता वाले क्षेत्र में ऋण को बने टास्क फोर्स
पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में दिये जाने वाले ऋण की गति में सुधार के लिए टास्क फोर्स के गठन की मांग की है। केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में सोमवार को पूर्वी राज्यों के मुख्यमंत्रियों, वित्त मंत्रियों और बैंकों के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारियों के साथ बैठक में यह मसला उठाया। उन्होंने कहा कि बिहार में कृषि, आवास, अल्पसंख्यकों, कमजोर वर्गो, शिक्षा ऋण यानी प्राथमिकता क्षेत्रों...
More »कृषि, कर्ज और महंगाई की चुनौतियां
नई दिल्ली [भारत डोगरा]। जहां एक ओर कृषि नीति के सामने महंगाई व किसानों के कर्ज की ज्वलंत समस्याएं हैं, वहीं दूसरी ओर जलवायु बदलाव के संकट से जूझना भी जरूरी है। वैसे तो पहले भी यह बार-बार अहसास हो रहा था कि न्याय, समता व पर्यावरण हितों की रक्षा और खेती में टिकाऊ प्रगति के लिए कृषि-नीति में बदलाव जरूरी हो गए हैं। अब जब जलवायु बदलाव के कुछ दुष्परिणाम नजर आने लगे हैं और...
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