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डिजिटल मीडिया का सच-- अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी

भारतीय लोकतंत्र की व्यापक परिधि में आज भी वह परिपक्वता नहीं है, जो किसी स्वस्थ समाज और लोक कल्याणकारी राज्य के लिए आवश्यक है। समाज में गरीबी, कम शिक्षा दर, सांप्रदायिक सोच, जातीय उन्माद, जेंडरगत कुंठा, व्यक्तिगत स्वार्थपरता और पूंजी के शातिराना खेल ने जिस परिवेश को बढ़ाया है, उसमें लोकतांत्रिक मूल्यों का लगातार क्षरण हो रहा है। जबकि देश में मीडिया के प्रति विश्वसनीयता की लंबी परंपरा रही है।...

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स्कूली शिक्षा में भेदभाव की विषबेल-- प्रियंका कानूनगो

भारत की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में कई प्रकार से शैक्षिक भेदभाव व्याप्त है, खासतौर पर स्कूली शिक्षा में इसकी जड़ें बहुत गहरे जम चुकी हैं। इस विषबेल को खाद, पानी, पोषण देने वाला ताकतवर समूह शिक्षा का बाजारीकरण कर उस बाजार का नियंत्रक बना बैठा है, जो कि संगठित माफिया की तरह कार्यरत है। वह न केवल नियमों को तोड़ता है बल्कि मनमाफिक नियम निर्धारण में भी पर्याप्त सक्षम है।...

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भारतीय समाज के नए यथार्थ-- ज्योति सिडाना

वर्ष 2016 में सेंटर फॉर द स्टडी आॅफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) ने कोनराड एडेन्यूर स्टीफटुंग (केएएस) के साथ मिल कर ‘भारत में युवाओं की अभिवृत्ति' विषय पर एक अध्ययन किया। इस सर्वे में पंद्रह से चौंतीस वर्ष के भारतीय युवाओं (देश में युवा आबादी करीब पैंसठ फीसद है) से अनेक सवाल पूछे गए। आंकड़ों के अनुसार अस्सी फीसद युवा ज्यादा चिंतित या असुरक्षित महसूस करते हैं। उनमें चिंता के मुख्य...

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जनसंख्या नियंत्रण की चुनौती-- बालमुकुंद ओझा

आज विश्व की जनसंख्या सात अरब से ज्यादा है। अकेले भारत की जनसंख्या सवा अरब से अधिक है। भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। आजादी के समय भारत की जनसंख्या तैंतीस करोड़ थी, जो आज चार गुना तक बढ़ गई है। परिवार नियोजन के कमजोर तरीकों, अशिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के अभाव, अंधविश्वास और विकासात्मक असंतुलन के चलते आबादी तेजी से बढ़ी है। संभावना है...

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आरटीआई कार्यकर्ता निखिल डे और साथी कोर्ट में दोषी करार, अरुणा राय ने कहा फैसला निराशाजनक

सूचना के अधिकार कानून के प्रसिद्ध कार्यकर्ता और समाजसेवी निखिल डे और उनके चार अन्य साथियों को किशनगढ़(अजमेर, राजस्थान) की एक अदालत ने दोषी ठहराते हुए चार माह के जेल की सजा सुनायी है.   16 मई 1998 के इस मामले में अदालत का फैसला 19 साल बाद 13 जून 2017 को आया है. मामला बिना मंजूरी रिहायशी परिसर में आने और हाथापाई करने से संबंधित है.   अदालत ने फैसले के तत्काल अमल को रोकते हुए...

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