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जरूरत से ज्यादा लोकतंत्र होने का भ्रम: बिना राजनीतिक आज़ादी के कोई आर्थिक आज़ादी टिक नहीं सकती

-द प्रिंट, अब यह बहस बेमानी है कि नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने जो यह कहा कि ‘हमारे यहां लोकतंत्र कुछ ज्यादा ही है’ उसका क्या मतलब है. आप उन लोगों के साथ भी जा सकते हैं जो इस बयान से नाराज हैं और इसे सीमित लोकतंत्र की मोदी सरकार की अवधारणा का एक बेबाक नौकरशाह के मुंह से किया गया खुलासा मानते हैं. या आप इस बृहस्पतिवार को ‘इंडियन...

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गन्ना पर गरम हो रही यूपी की किसान राजनीति

-इंडिया टूडे, उत्तर प्रदेश में वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में अब एक साल से कुछ ही ज्यादा समय बाकी रह गया है. ऐसे में गन्ना के न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर किसान राजनीति भी तेज होने की भूमिका बननी शुरू हो गई है. कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन से प्रदेश सरकार पर गन्ना मूल्य बढ़ाने का दबाव बनाने की रणनीति किसान संगठनों ने बनाई है. उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक...

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किसानों के विरोध को ना मैनेज कर पाना दिखता है कि मोदी-शाह की BJP को पंजाब को समझने की जरूरत है

-द प्रिंट, भाजपा को राजनीति की कितनी समझ है? अगर आप इस तरह का सवाल पूछने की कोशिश भी करेंगे तो लोग आपसे यही कहेंगे कि जाइए पहले अपने दिमाग का इलाज करवाइए. इसमें कोई शक नहीं कि राजनीति की उसकी समझ और किसी और की समझ में उतना ही अंतर है जितना लोकसभा की 303 और 52 सीटों में अंतर है. तब आप शायद सवाल को और बारीकी से उठाएंगे और...

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'चलो दिल्ली' पर बोले बलवीर सिंह राजेवाल- "हमें रोका गया तो दिल्ली-हरियाणा को चारों तरफ से घेरेंगे, किसान के पास मरने के सिवा कोई विकल्प ही नहीं"

-गांव कनेक्शन, "कोरोना हो या लॉकडाउन हो, हमें फर्क नहीं पड़ता। देखिए किसान को तो मरना ही है। कोरोना नहीं मार पाएगा तो मोदी सरकार की नीतियां मार देंगी। काले कानूनों के खिलाफ दिल्ली कूच तय है। अगर हमें हरियाणा वाले रोकेंगे तो हरियाणा को चारों तरफ से घेर लेंगे और दिल्ली को यूपी वाले यूपी की तरफ से राजस्थान वाले राजस्थान की तरफ से, जो जहां रोका जाएगा डेरा डाल...

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लोकतंत्र की संरचना में ही असहमति गुंथी होती है

-सत्याग्रह, असहमति की व्याप्ति डेढ़ेक बरस पहले अहमदाबाद विश्वविद्यालय की अध्यापिका प्रतिष्ठा पण्ड्या ने फ़ोन कर बताया कि उन्होंने मेरे सम्पादन में आयी ‘इण्डिया डिसेण्ट्स’ संचयिता देखी है और मैं असहमति पर उनके छात्रों और सहकर्मियों से संवाद करने उनके द्वारा संचालित एक बौद्धिक सीरीज़ ‘नालन्दा’ में भाग लूं. जाना कई कारणों से नहीं हो पाया और फिर कोविड महामारी आ गयी. सो अब यह संवाद ऑनलाइन हुआ. छात्रों और अध्यापकों ने...

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