जहां व्यक्तियों के निजी स्वार्थ बहुत महत्वपूर्ण हों और समाज का कोई स्वार्थ न हो, वहां अंतर्कलह होना कोई अनहोनी बात नहीं है। यह बात आज की राजनीतिक परिस्थिति पर सटीक बैठती है। राजनीतिक दलों के स्वार्थ समाज और देश के हित पर भारी पड़ रहे हैं। राजनीतिक दलों की आपसी प्रतिद्वंद्विता/प्रतिस्पर्द्धा स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छी भी है और जरूरी भी। संसदीय जनतंत्र में विपक्ष की भूमिका बड़ी अहम...
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‘वयं आधुनिका:’-- मृणाल पांडे
आपको यह जानकर अचरज होगा कि जिस तरह आज हम अंग्रेजी में ‘द न्यू रियल' यानी नयी सच्चाई को जगह देकर पुरानी सचाइयों को खारिज कर रहे हैं, वह सिलसिला आज का नहीं, बहुत पुराना है. सदियों से हर नयी पीढ़ी यह दावा करती आयी है कि वह पुरानों से बेहतर है. सबसे पहले का लिखित दावा 11वीं सदी के आसपास का है. इसमें मिथिला के उदयनाचार्य अपने निकट परवर्ती...
More »अस्मिता की राजनीति से परे-- मणींद्र नाथ ठाकुर
भारतीय जनतंत्र में अस्मिता की राजनीति का प्रभाव काफी समय से रहा है. पिछले कुछ वर्षों में ऐसा लगने लगा था कि शायद इसका युग अब समाप्त हो जायेगा. लेकिन अब इसके विकृत रूप के उभार की संभावनाएं बढ़ती दिख रही हैं. बिहार-बंगाल में दंगे, राजपूती शान के नाम पर पद्मावत फिल्म के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन, आरक्षण के लिए विभिन्न जातियों का आंदोलन, दलितों का राष्ट्रव्यापी बंद और राष्ट्रवाद व धर्म...
More »निजीकरण नहीं वनों का हो कायाकल्प-- रामचंद्र गुहा
पैंतालीस साल पहले अलकनंदा घाटी के ग्रामीणों ने जब जंगल से पेड़ काटकर ले जाने वालों को रोका, तो किसी ने सोचा न होगा कि यहीं से चिपको आंदोलन की नींव पड़ने जा रही है। एक ऐसा किसान आंदोलन, जिसने भारत में वनों के व्यावसायिक दोहन पर सबका ध्यान खींचा। चिपको आंदोलन का ही यह असर था कि वनाधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी। गढ़चिरौली, बस्तर, सिंहभूम और पश्चिमी घाट सहित...
More »बाजार पर वर्चस्व की जंग-- निरंकार सिंह
अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक वस्तुओं पर लगने वाले आयात कर को लेकर टकराव जारी है। अमेरिका का तर्क है कि चीनी सामानों के आयात से उसका व्यापारिक घाटा बहुत बढ़ गया है। अमेरिका ने जहां चीनी सामानों पर आयात कर बढ़ा दिया, वहीं चीन ने अमेरिका से आने वाले सामान पर आयात कर बढ़ा दिया है। दरअसल, जंग अब सिर्फ देशों की सीमाओं पर नहीं होती; वैश्वीकरण की...
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