जब शादी की बात हो, तो अक्सर सुनने में आता हैं- जोड़ियां ऊपर बनती हैं. तो क्या ऊपर ही टूटती भी होंगी? लेकिन ऐसा है नहीं. विवाह पवित्र बंधन है और विवाह का टूटना एक सामाजिक कलंक मान लिया गया है. जोड़ियां बनानेवाले ने उनमें चक्रव्यूह के अभिमन्यु की तरह जाने का आसान रास्ता तो बनाया है, निकलने का नहीं. जैसे शादी में दोनों को ‘कुबूल' होना जरूरी है, लेकिन...
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टूटना चाहिए तीन तलाक का मिथक - रामिश सिद्दीकी
आज देशभर में एक चर्चा ने फिर से तेजी पकड़ ली है। चर्चा का विषय है समान नागरिक संहिता। देश में यह मुद्दा नया नहीं है। इसका लंबा इतिहास है। अनेक लोग समान नागरिक संहिता को भारतीय जनता पार्टी का आविष्कार समझते हैं, पर उन्हें यह जानकर हैरानी होगी कि समान नागरिक संहिता का सबसे पहला जिक्र 1928 में नेहरू रिपोर्ट में मिलता है। यह रिपोर्ट भारत के संविधान का...
More »घोर किसान विरोधी है मोदी सरकार: योगेंद्र यादव
आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता एवं ‘स्वराज इंडिया' के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार किसान हितैषी नहीं हैं। लाइव इंडिया डिजिटल से योगेंद्र यादव ने कई अहम विषयों पर की खास बातचीत। सवाल: स्वराज इंडिया नाम से आपने एक राजनीतिक पार्टी बनाया है। ऐसी खबरें आ रही हैं कि आपकी पार्टी अगले साल पंजाब में विधानसभा चुनाव और नई दिल्ली...
More »पर्यावरण विमर्श का जनपक्ष-- अनुज लुगुन
विश्व बाजार में आज दो विपरीत चीजें एक साथ चल रही हैं- हथियारों की होड़ एवं पर्यावरण विमर्श. ग्लोबलाइजेशन ने ‘ग्लोबल' होने का जो सिद्धांत दिया, उसने ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को भी पैदा किया. क्योंकि ‘ग्लोबल' होने का आधार बाजार को बनाया गया और बाजार ने पूंजी के जिस प्रलोभन को जन्म दिया, उसने हथियारों की होड़ को पैदा किया. अगर गंभीरता से देखा जाये, तो इन दोनों का...
More »गोलवलकर की किताब के बहाने-- रामचंद्र गुहा
बेंगलुरु किताबों का शहर नहीं है। फिर भी यह मेरा शहर ही है, जहां से करीब 50 साल पहले एक किताब छपी थी, जिसे भारतीय समाज और राजनीति के हर विद्यार्थी को अनिवार्य रूप से पढ़ना चाहिए। यह किताब थी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक एमएस गोलवलकर की बंच ऑफ थॉट्स, जिन्होंने संघ को न सिर्फ 30 वर्ष से ज्यादा वक्त तक नेतृत्व दिया, बल्कि आज भी संघ के लिए...
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