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असमानता की जड़ें-- सतीश सिंह

सरकार चाहती है कि देश विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर हो, लेकिन वह बैंकों की सेहत सुधारने की दिशा में ठोस पहल नहीं कर रही है। मजबूत अर्थव्यवस्था की रीढ़ बैंकिंग क्षेत्र को माना गया है। अर्थव्यवस्था को बैंकों की मदद से ही संतुलित रखा जा सकता है। बैंकों की सकारात्मक भूमिका के बिना वित्तमंत्री देश के विकास के सपने को साकार नहीं कर सकते हैं। संपत्ति शोध कंपनी ‘न्यू...

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किराए की कोख और कानून-- सुधा सिंह

सरोगेसी विधेयक पर हर तरह की राय आ रही है। अन्य देशों का हवाला दिया जा रहा है जहां सरोगेसी पर पाबंदी है, विशेषकर यूरोपीय देशों का। मोटे तौर पर सरोगेसी दरअसल ऐसे दंपति को संतान का सुख देने का जरिया है जहां स्त्री किसी कारण से गर्भधारण नहीं कर सकती, लेकिन जिन्हें अपनी जैविक संतान, कुछ समान जिनेटिक गुणों के साथ, चाहिए। ऐसे में महिला का अंडा और...

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भ्रष्टाचार और प्रदूषण का खनन-- रामचंद्र गुहा

जब नई सदी की शुरुआत हुई, तो मेरे गृह राज्य कर्नाटक में आर्थिक उदारीकरण के ‘पोस्टर बॉय' थे- एन आर नारायण मूर्ति। मध्यवर्गीय परिवार से निकले इस शख्स के पास उद्यमशीलता का कोई पारिवारिक अनुभव नहीं था। नारायण मूर्ति ने अपनी जैसी सोच वाले छह अन्य लोगों को जोड़ा और इन्फोसिस की नींव रखी। बहुत मामूली शुरुआत हुई थी इसकी, मगर साल 2000 तक इस कंपनी का मुख्यालय न सिर्फ बेंगलुरु...

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बिछड़े सब बारी-बारी, खेती-बारी-- अनिल रघुराज

आखिर कोई कितना इंतजार करता! देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, ‘सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन कृषि नहीं.' मगर, आजादी से लेकर कृषि को इंतजार करते-करते अब सात दशक होने जा रहे हैं. वह अब भी भगवान भरोसे है. इंद्रदेव नाराज, तो सूखे की त्रासदी और खुश तो बहुत बड़े इलाके में बाढ़ की तबाही. जिनके बरदाश्त करने की हद चुक जाती है, वे इस...

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शहरीकरण की विसंगतियां--- रमेश कुमार दूबे

शहरीकरण को लेकर सरकार का नजरिया यह है कि इस पर सियापा करने के बजाय इसे मौके के रूप में देखा जाना चाहिए। उसके मुताबिक शहरों में गरीबी दूर करने की ताकत होती है और हमें इस ताकत को और आगे बढ़ाना चाहिए ताकि आर्थिक समृद्धि का स्वत: प्रसार हो। सुख-सुविधाओं की मौजूदगी के चलते शहर सदा से मनुष्य के आकर्षण के केंद्र रहे हैं। आज की तारीख में तो ये...

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