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नए कीटनाशक प्रबंधन विधेयक से पर्यावरण और जनता को नुकसान, कारोबारियों को फायदा

-कारवां, महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में 6 अगस्त 2021 की रात 42 साल के एक किसान की कीटनाशक जहर से मौत हो गई थी. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, विनोद मसराम चव्हाण अपनी कपास की फसल को घातक गुलाबी बॉलवर्म से बचाने के लिए कीटनाशक नुवाक्रॉन का छिड़काव करते समय उसके संपर्क में आ गए थे. कीटनाशक में मोनोक्रोटोफोस होता है जो एक जहरीला कंपाउंड है. यह अंतरराष्ट्रीय...

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ओमिक्रॉन: 'पहली बार एक नए गेंदबाज का सामना करने जैसा है'

-इंडियास्पेंड, दक्षिण अफ्रीका में सार्स-कोविड-2 का एक नया वेरिएंट भारत समेत दुनिया के दो दर्जन से अधिक देशों में फैल चुका है। नाम है इसका ओमीक्रॉन। ओमीक्रॉन न सिर्फ पब्लिक हेल्थ सेक्टर में, बल्कि दुनियाभर के फाइनेंशियल सेक्टर में भी सुर्खियों में है। दुनियाभर की सरकारों में भी इस बात को लेकर चिंता पैदा हो रही है कि आने वाले वक्त में यह किस तरह से अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा। ऐसे...

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पांच राज्यों में चुनाव: डिजिटल प्रचार से फायदा किसका

-न्यूजलॉन्ड्री,  जैसे- जैसे पांचों राज्यों के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे- वैसे राजनीतिक दलों और नेताओं का प्रचार तेज हो गया है. लेकिन इस बार का चुनाव एक अलग अंदाज में होने जा रहा है. दरअसल इस बार हमेशा की तरह बड़ी-बड़ी रैलियां नहीं देखने को मिलेंगी. ऐसा इसलिए क्योंकि चुनाव आयोग ने कोरोना के चलते पांचों राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में बड़े पैमाने पर सभाओं...

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सरकारी दावे से उलट किसानों को नहीं मिल रहा यूरिया समेत अन्य खाद

-न्यूजलॉन्ड्री, केंद्र सरकार ने 10 दिसंबर को संसद में यूरिया की कमी को लेकर सात सांसदों द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब दिया. रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया ने यूरिया की देश में पर्याप्त मात्रा के सवाल पर कहा, देश में यूरिया की कोई कमी नहीं है. इस दौरान उन्होंने रबी फसल के लिए यूरिया की आवश्यकता, उपलब्धता और बिक्री की भी राज्यवार जानकारी दी. संसद में यूरिया और डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी)...

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खेती के संबंध में कुछ बड़ी भ्रांतियां और किसान आंदोलन पर उनका प्रभाव

-न्यूजक्लिक, भारतीय खेती के संबंध में अनेक भ्रांतियां हैं, जिन्हें अगर फौरन दूर नहीं किया जाता है तो उनका, तीन कृषि कानूनों के खिलाफ इस समय चल रहे किसान आंदोलन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इनमें पहली भ्रांति तो इस धारणा में ही है कि किसानी खेती पर कार्पोरेट अतिक्रमण तो ऐसा मामला है जो बस कार्पोरेट अतिक्रमणकारियों और किसानों से ही संबंध रखता है। यह गलत है। किसानी खेती...

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