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क्या हम भारतीय कृषि क्षेत्र में घटती किसानी आमदन के साक्षी हैं?

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के 77वें दौर के सर्वेक्षण पर आधारित 'ग्रामीण भारत में परिवारों की स्थिति का आकलन और परिवारों की भूमि जोत, 2019', हाल ही में जारी स्थिति आकलन सर्वेक्षण इस तथ्य को स्थापित करता है कि किसान परिवार अपनी आजीविका के लिए 'खेती-बाड़ी से शुद्ध आय' के बजाय मजदूरी पर अधिक से अधिक निर्भर हैं. मार्क्सवादी शब्दावली में, सर्वहाराकरण (एक शब्द जिसे हम निर्वासन के लिए शिथिल रूप से उपयोग कर सकते हैं) उस प्रक्रिया...

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गुजरात सरकार का तौकते राहत पैकेज प्रवासी मछुआरों की वास्तविकताओं से परे है

-द वायर, मई के महीने में भारत के कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से गुजरते तौकते चक्रवात ने गुजरात में तबाही मचा दी थी. राज्य के मत्स्य व्यवसाय को इसके चलते अनुमानतः 160 करोड़ रुपये का भारी नुकसान झेलना पड़ा. हालांकि विशेषज्ञों का अनुमान है कि असल नुकसान इससे कई गुना ज्यादा है. गुजरात सरकार द्वारा मछुआरों के साथ-साथ उनकी नावों एवं उपकरणों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए 105 करोड़ रुपये का...

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समाज के वंचित वर्गों के बच्चों के लिए बहुत कठिन है ऑनलाइन शिक्षा का रास्ता!

कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से एडटेक कंपनियों द्वारा शारीरिक कक्षाओं के विकल्प के तौर पर प्रचारित ऑनलाइन शिक्षण और शिक्षा, का हमारे देश में एक बड़ा उपभोक्ता आधार बन गया है. हालाँकि, समाज के वचिंत वर्गों में, ऑनलाइन शिक्षा का प्रभाव और फैलाव बहुत कम है. वास्तव में, हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद वर्ग और जाति-विभाजन की गहरी जड़ें डिजिटल शिक्षा तक लोगों की पहुंच को प्रभावित करता...

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मोदी सरकार की 6 ट्रिलियन रु. की मौद्रीकरण योजना खतरों के बीच ख्वाब देखने जैसा क्यों है

-द प्रिंट, निजीकरण और ‘मौद्रीकरण’ में फर्क यह है कि निजीकरण में तो सरकार व्यवसाय से अलग हो जाती है, जबकि मौद्रीकरण सरकार को उसका सक्रिय खिलाड़ी बनाए रखता है. इस लिहाज से निजीकरण मौद्रीकरण से कहीं आसान है. फिर भी, निजीकरण के मामले में दुखद रिकॉर्ड (एअर इंडिया, भारत पेट्रोलियम आदि) रखने वाली और विनिवेश के लक्ष्य से कोसों पीछे रह गई सरकार मौद्रीकरण के जरिए चार साल में 6...

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नवउदारवाद और राष्ट्रवाद के बीच में खेती-किसानी का भविष्य

-न्यूजक्लिक, सभी जानते हैं कि तीसरी दुनिया के देशों में मुक्ति का संघर्ष जिस साम्राज्यविरोधी राष्ट्रवाद से संचालित था, वह उस पूंजीवादी राष्ट्रवाद से बिल्कुल भिन्न प्रजाति की चीज थी, जिसका जन्म सत्रहवीं सदी में यूरोप में हुआ था। पश्चिम में इस तरह की प्रवृत्ति है, जिसमें प्रगतिशील भी शामिल हैं, जो राष्ट्रवाद को एकसार तथा प्रतिक्रियावादी श्रेणी की तरह देखती है। वे साम्राज्यविरोधी राष्ट्रवाद तक को यूरोपिय पूंजीवादी राष्ट्रवाद के...

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