गरीबी की तुलना में समृद्धि की पहचान बेहद आसान है। दौलत या तो नजर आती है या उसका निर्लज्ज नजारा होता है, जबकि निर्धनता अनदेखी ही बनी रहती है। सबसे बदतर किस्म की गरीबी देश और दुनिया के उन हिस्सों में अदृश्य रहती है, जहां यह सरकार के उद्गम स्थल से बाहर होती है और व्यावसायिक प्रतिष्ठान, नौकरशाही या मीडिया सरीखे आधुनिक जीवन के इंजनों को ईंधन देने का काम करने वाले...
More »SEARCH RESULT
मुश्किल है गरीबों की पहचान? : हर्ष मंदर
यदि आप किसी गांव में जाएं और ग्रामीणों से पूछें कि यहां रहने वाले लोगों में से कौन गरीब हैं, तो उनके लिए इस सवाल का जवाब देना कठिन नहीं होगा। शायद वे किसी दृष्टिहीन विधवा का नाम बताएं, या किसी बुजुर्ग दंपती की ओर इशारा करें, जो भीख मांगकर पेट भरते हैं, या कर्ज के बोझ तले दबे किन्हीं किसानों का उल्लेख करें। वे गरीबों की अपनी सूची में पिछड़ी जाति के...
More »निर्धनता का विचित्र पैमाना- संजय गुप्त
उच्चतम न्यायालय में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खामियां दूर करने के मामले की सुनवाई के सिलसिले में योजना आयोग के इस हलफनामे ने देश को चौंका दिया कि शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन 32 और ग्रामीण इलाकों में 26 रुपये खर्च करने वाले लोग गरीबी रेखा से ऊपर माने जाएंगे। इस हलफनामे से योजना आयोग के साथ-साथ केंद्र सरकार की भी फजीहत हुई। इस हलफनामे को लेकर सबने सरकार को कोसा।...
More »बकरी चराने वाली बनीं लाखों बच्चों की 'प्रेरणा'
मुजफ्फरपुर. बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पटियासा गांव में एक निर्धन परिवार में जन्मी अनीता ने मधुमक्खी पालन का व्यवसाय अपनी और परिवार की गरीबी दूर करने के लिए बहुत छोटे पैमाने पर शुरू किया था लेकिन आज वह 'हनी गर्ल' बन गई हैं। उनकी कामयाबी की कहानी न केवल स्कूली बच्चों को पढ़ाई जा रही है, बल्कि उनके नाम पर मधु ब्रांड लाने की भी तैयारी है। बोचहा प्रखंड के एक पिछड़े गांव...
More »भारतीय लोकतंत्र के नाजी पहरुए- तहलका
अररिया में 10 महीने के बच्चे और गर्भवती महिला समेत चार लोगों की मौत को पुलिस आत्मरक्षा की कार्रवाई बता कर जायज ठहरा रही है. लेकिन निरीह घायलों के शरीर पर पुलिसवालों की निर्मम कूद-फांद को कैसे उचित ठहराया जा सकता है? इस मामले में नीतीश कुमार की चुप्पी भी कई सवालों को जन्म देती है. निराला की रिपोर्ट घायल मुस्तफा के शरीर पर एक पुलिसवाला जब लांग जंप, हाई जंप...
More »