यह 1989 की बात है जब मैं शिवराम कारंथ से उनके दक्षिण कर्नाटक स्थित गांव सालिग्राम में मिला था। आधुनिक कन्नड़ उपन्यास के जनक, यक्षगान जैसे प्राचीन नृत्य नाटक का पुनर्पाठ प्रस्तुत करने वाले, विधवा विवाह और स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने वाले शिवराम कारंथ उन दिनों अपने प्यारे पश्चिमी घाटों को विनाश से बचाने की मुहिम में जुटे थे। 80 साल की उम्र में भी वे खासे सक्रिय रहकर...
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समावेशी विकास के प्रतिमान-- अनंत कुमार
भारत की अलौकिक सुंदरता इसकी संस्कृतियों, परंपराओं, लोगों, प्राकृतिक दृश्यों, भाषाओं आदि की विविधता में निहित है. इसका विशाल विस्तार भी ऐसी चुनौतियां प्रस्तुत करता है, जो केवल इस देश के लिए विशिष्ट हैं. अत: इन विविध चुनौतियों से निपटने के लिए ऐसे उपायों की जरूरत है, जो प्रत्येक स्थिति के लिए उपयुक्त हों. भारत के राष्ट्रीय विकास एजेंडा में अन्य के साथ-साथ गरीबी, सतत विकास, स्वास्थ्य, पोषण, लैंगिक...
More »आधी आबादी का संघर्ष-- डा. अनुज लुगुन
तारीखें कैलेंडर में टंगी चुप्पी साधी चीज नहीं होती हैं, यह तो इतिहास के सबल साजो-सामान और विचार को हमारी आंखों के आगे चस्पा कर उस भार का एहसास दिलाती रहती हैं, जो पूर्वजों के कंधों से होकर हमारे वर्तमान में प्रवेश कर जाती हैं. फर्क इस बात का पड़ता है कि हम यूं ही कैलेंडर के पन्ने पलट देते हैं या उसे पढ़ पाते हैं. ऐसे ही 08 मार्च,...
More »धरोहर से भी ज्यादा हैं नदियां -- वीरेंद्र कुमार पैन्यूली
राज्य अपने-अपने क्षेत्र में बहती नदियों को अपने स्वामित्व की सरकारी संपत्ति मानते रहे हैं। कई मामलों में राज्यों की जनता भी वैसी ही समझ रखती है। ऐसी संपत्ति जिसको वे तिजोरी में बंद कर सकते हैं और उसमें दूसरों की हिस्सेदारी वे ही तय करेंगे। बांधों और नहरों पर पहरे लगने और उनके लिए जंग होने की खबरें अब कोई नई बात नहीं हैं। कावेरी नदी के जल पर...
More »एक सदी पुराने विवाद का निपटारा-- एम श्रीनिवासन
कावेरी जल बंटवारे को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु में 125 से भी अधिक वर्षों से विवाद चला आ रहा है। पिछले हफ्ते आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ अब यह झगड़ा खत्म होने के करीब दिख रहा है। लेकिन क्या यह हल स्थाई होगा? क्या यह फैसला देश के अन्य नदी जल विवादों में भी नजीर बनेगा? सुप्रीम कोर्ट का फैसला आंशिक रूप से ही इन सवालों के जवाब...
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