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स्वास्थ्य बीमा से महरुम हैं कचरा बीनने वाले, 33 प्रतिशत के पास जनधन खाते नहीं

-डाउन टू अर्थ, देश के बड़े शहरों में कचरा बीनने वालों के पास पांच फीसदी से भी कम स्वास्थ्य बीमा है, जबकि 79 प्रतिशत सफाई साथियों के जनधन खाते नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ओर से 25 जनवरी 2022 को कचरा बीनने वालों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का बेसलाइन विश्लेषण जारी किया गया। यूएनडीपी की प्लास्टिक मैनेजमेंट यूनिट और पॉलिसी यूनिट ने यह रिपोर्ट तैयार की है। कचरा बीनने वालों...

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भेदभाव में लिंग-जाति अंतर्विरोध: क्या मरीज़ डॉक्टर की सामाजिक पहचान की परवाह करते हैं?

-आइ़डियाज फॉर इंडिया, भारत में सामाजिक पहचान पर आधारित भेदभाव व्यापक रूप में फैला होने की वजह से, भेदभाव में जाति-लिंग अंतर्विरोध के अध्ययन हेतु एक अनूठी सेटिंग उपलब्ध होती है। यह लेख, उत्तर प्रदेश में किये गए एक क्षेत्रीय प्रयोग के आधार पर दर्शाता है कि मरीज द्वारा महिला डॉक्टरों की तुलना में पुरुष डॉक्टरों को पसंद किये जाने के कारण जाति-संबंधी पूर्वाग्रह इस लिंग संबंधी भेदभाव को और बढ़ा...

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पीड़ित बच्चे नहीं जानते कि वह एचआईवी से ग्रस्त हैं, हर पांच मिनट में हो रही एक की मौत

-न्यूजलॉन्ड्री, दुनिया में कहीं न कहीं हर पांच मिनट में एक बच्चे की मौत एचआईवी/एड्स के कारण हो रही है. यह जानकारी यूनिसेफ द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट में सामने आई है, जिसके अनुसार 2020 में करीब 1.2 लाख बच्चों की जान एचआईवी संक्रमण के कारण गई थी. यही नहीं यदि रिपोर्ट में जारी आंकड़ों को देखें तो 2020 में कम से कम 300,000 बच्चे एचआईवी संक्रमित हुए थे, जिसका मतलब है...

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कॉप-26: सौ महीने से कम समय बाकी, इन वजहों से हो सकती है नतीजे मिलने में दिक्कत

-डाउन टू अर्थ, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (कॉप-26) के तहत 31 अक्टूबर से 12 नवंबर के बीच चलने वाला 26वां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन अपनी निर्धारित समय-सीमा से एक दिन आगे तक चला। वैश्विक जलवायु संकट से निपटने को अपने प्रयासों मे तेजी लाने के लिए अंततः इसमें ग्लासगो जलवायु समझौता (जीसीपी ) पर सहमति बनी। अंतिम सत्र में 197 देशों द्वारा तैयार जीसीपी में जिन सिद्धांतों का...

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खून और स्याही

-द कारवां, वह मेरे जीवन का सबसे वीभत्स दृश्य था. दिल्ली पुलिस के सब्जी मंडी स्थित मुर्दाघर में मैंने जो मंजर देखा वह ऐसा था कि मेरे साथी पत्रकार दीपांकर डे सरकार उल्टियां करने लगे थे. वह 1 नवंबर 1984 का दिन था और इंदिरा गांधी को उनके सिख सुरक्षागार्डों द्वारा गोली मारे जाने के 24 घंटे हुए थे. भयानक हिंसा में निर्दोष सिखों को निशाना बनाया जा रहा था. यह मध्यकालीन न्याय...

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