अपनी वीरता और जुझारूपन के लिए प्रसिद्ध बुंदेलखंड में कई सालों के सूखे, इसके चलते पैदा कृषि संकट और इनसे निपटने की योजनाओं में भ्रष्टाचार ने पलायन और आत्महत्याओं की एक अंतहीन श्रृंखला को जन्म दे डाला है. - रिपोर्ट रेयाज उल हक बुंदेलखंड को मिले 3,506 करोड़ रुपए के पैकेज से महोबा जिले के पवा गांव की रामकली को समय पर और नियमित रूप से राशन मिल जाने की कम...
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विद्रोह के केंद्र में दिन और रातें
जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता और ईपीडब्ल्यू के सलाहकार संपादक गौतम नवलखा तथा स्वीडिश पत्रकार जॉन मिर्डल कुछ समय पहले भारत में माओवाद के प्रभाव वाले इलाकों में गए थे, जिसके दौरान उन्होंने भाकपा माओवादी के महासचिव गणपति से भी मुलाकात की थी. इस यात्रा से लौटने के बाद गौतम ने यह लंबा आलेख लिखा है, जिसमें वे न सिर्फ ऑपरेशन ग्रीन हंट के निहितार्थों की गहराई से पड़ताल करते हैं, बल्कि माओवादी...
More »दाल से टूटता रोटी का नाता
नई दिल्ली [रमेश दुबे]। दलहनों की पैदावार बढ़ाने के लिए लगभग दो दर्जन योजनाओं की असफलता के बाद केंद्र सरकार ने सीधे किसानों को ज्यादा कीमत देने की रणनीति अपनाई है। इसके तहत दलहनी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी बढ़ोत्तरी की गई है। जहा अरहर के समर्थन मूल्य में सात सौ रुपये की वृद्धि की गई है, वहीं मूंग में 410 रुपये तथा उड़द में 380 रुपये की...
More »किसान मरे नहीं तो क्या करे--- देविंदर शर्मा
भारत में किसानों की आत्महत्या को लेकर छिड़ी बहस के बीच अमरीका में किसानों को अनुदान दिए जाने के बारे में एक दिलचस्प रिपोर्ट आई. 1997 से 2008 के बीच भारत में करीब दो लाख किसानों ने बढ़ते कर्ज के कारण होने वाले अपमान से बचने के लिए अपनी जान देने का आत्मघाती कदम उठाया. इन किसानों को सरकार से किसी प्रकार की सीधी सहायता नहीं मिली थी. अमरीका ने 1995...
More »कृषि, कर्ज और महंगाई की चुनौतियां
नई दिल्ली [भारत डोगरा]। जहां एक ओर कृषि नीति के सामने महंगाई व किसानों के कर्ज की ज्वलंत समस्याएं हैं, वहीं दूसरी ओर जलवायु बदलाव के संकट से जूझना भी जरूरी है। वैसे तो पहले भी यह बार-बार अहसास हो रहा था कि न्याय, समता व पर्यावरण हितों की रक्षा और खेती में टिकाऊ प्रगति के लिए कृषि-नीति में बदलाव जरूरी हो गए हैं। अब जब जलवायु बदलाव के कुछ दुष्परिणाम नजर आने लगे हैं और...
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