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“मोदी ने देश को घुटनों पर ला दिया”: टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा

-आउटलुक, तृणमूल काग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा मोदी सरकार की प्रखर आलोचक हैं। हाल के चुनावी नतीजों, केंद्र सरकार के सात साल के कामकाज, मौजूदा दौर में उसकी छवि, कोविड की दूसरी लहर और केंद्र-राज्य संबंध जैसे विषयों पर आउटलुक के प्रीता नायर ने उनसे बात की। मुख्य अंश: हाल के वर्षों में केंद्र-राज्य संबंधों को आप कैसे देखती हैं? इस सरकार ने संघीय ढांचे को तार-तार कर दिया है। इसके दो कानूनों को लीजिए- एनआइए और...

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ग्रामीण भारत में बढ़ता कोरोना : डॉक्टरों की कमी, झोलाछाप पर भरोसा और वैक्सीन के लिए झिझक

-गांव कनेक्शन, भारत की 65 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, जबकि सिर्फ 33 प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधाएं ही उन्हें मिल रही हैं। ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढांचा तीन स्तर पर काम करता है, जिसमें एक उप-केंद्र, एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) शामिल हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार इन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 3,000 से अधिक डॉक्टरों की कमी है, जो पिछले 10 सालों...

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चार बातें, जो तय करेंगी कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड की दूसरी लहर के झटके से कैसे उबरेगी

-द प्रिंट, कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के कोप ने हम सबको सकते में डाल दिया है. वास्तव में इसने जबरदस्त दुख और पीड़ा पहुंचाई है. पिछले कुछ दिनों से कोविड संक्रमण के नये मामलों में कमी आने लगी है, जिससे उम्मीद को सहारा मिला है. हालांकि दूसरी लहर अभी खत्म नहीं हुई है और नये मामलों में 2.4 प्रतिशत की कमी आई है, जिससे उम्मीद बंधी है कि अर्थव्यवस्था अगली तिमाही...

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बिना पैसे और दस्तावेज़ों के कोविड-19 की जंग लड़ रहे हैं रोहिंग्या शरणार्थी

-न्यूजक्लिक,  दिल्ली के कई शरणार्थी शिविरों में रह रहे रोहिंग्या मुस्लिमों के पास न तो इलाज के लिए पैसा है और न ही कोविड-19 रोधी टीका लगवाने के लिए दस्तावेज हैं जिससे महामारी के इस दौर में जीवित रहने के लिए वे खुद ही संघर्ष कर रहे हैं। सरकार ने उन लोगों के लिए जांच और टीकाकरण के दिशा निर्देशों को आसान बनाया है जिनके पास पर्याप्त दस्तावेज नहीं है लेकिन कई...

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आवरण कथा/ कोविड कहर : वो कौन गुनहगार है...

-आउटलुक, “महामारी की भयंकर दूसरी लहर में बेबस लोग अस्पताल, ऑक्सीजन, दवाइयों के अभाव में बेमौत मरने को मजबूर, सारा ढांचा चरमराया, सत्ता के अपने खेल में मस्त लापरवाह सरकार की खुली पोल” हर तरफ मौत, मायूसी, बेबसी जैसे पसरी हुई है। जो चंद दिनों पहले कोरोना पर विजय का दंभ भर रहे थे, वे किन्हीं छद्म के आवरणों में छुप गए हैं। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है। ऐसे मंजर...

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