महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना(मनरेगा) के बारे में ज्यादातर खबरें या तो उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार की होती हैं या फिर योजना की कारआमली में हो रही ढिलाई की। सरकार ने इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा पर कुल 40 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं लेकिन शहराती मध्यवर्ग का एक बड़ा तबका और जनमत-निर्माता इसी पसोपेस में हैं कि आखिर इन रुपयों से कुछ सार्थक हो भी रहा है या नहीं। नुक्ताचीनी की बातों...
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बेघर हैं दो लाख बीपीएल परिवारब
भागलपुर : भागलपुर जिले में करीब दो लाख बीपीएल परिवार खुले आकाश के नीचे रहते हैं। जिले की कुल प्रतीक्षा सूची 3 लाख 02 हजार की है। इसमें यह माना गया है कि अब तक (दस वर्षों में) करीब एक लाख लोगों को इंदिरा आवास के निर्माण के लिए राशि दे दी गयी है। शेष दो लाख दो हजार लोगों (परिवारों) के पास अपना घर नहीं है। इनके नाम इंदिरा आवास...
More »सूचना का अधिकार बना हथियार- अशीष कुमार अंशु
कमलेश कामत अमही प्रखंड मधुबनी, बिहार के रहने वाले हैं. सूचना के अधिकार से उनका परिचय अभी नया-नया है. वे समझ नहीं पा रहे हैं कि हाल में जब प्रखंड कार्यालय से उन्होंने पंचायत में होनेवाले विकास संबंधी कायरें में हो रहे व्यय का ब्योरा मांगा तो क्यों पंचायत से लेकर ब्लॉक तक में उनकी इज्जत पहले से कई गुना बढ़ गयी. पहले जो बीडीओ उन्हें अपने आस-पास भी फ़टकने...
More »वेदांत- हिन्दुत्व और साम्राज्यवादी मंसूबों का विध्वसंक मिश्रण- रोजर मूडी
विभिन्न देशों के कानून और पर्यावरण नियमों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन करने में वेदांत रिसोर्सेज़ की एक अलग पहचान है. कहने को तो यह कम्पनी एक पब्लिक कम्पनी है मगर इसमें वर्चस्व खुले तौर पर केवल एक व्यक्ति, उसके परिवार और इष्ट मित्रों का ही है. इस कम्पनी को इस बात पर भी नाज़ है कि वह हिन्दुत्व और नव-उदार रूढ़िवादिता में समन्वय स्थापित करती है. परेशानी की बात...
More »पीपीपी से सावधान -योगेश दीवान
भूमंडीलकरण-उदारीकरण के इस काल में अचानक एनजीओ या सिविल सोसाइटी समूहों की बाढ़ आना और वह भी शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, परिवहन और भोजन के मुद्दों पर थोड़ा शक पैदा करता है. खासकर, डब्ल्यूएसएफ की उस पूरी प्रक्रिया के बाद जो कहता था- “एक और दुनिया संभव है.” WSF इस असंभव को संभव बनाया है पीपीपी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के उस मॉडल ने, जो न सीधा निजीकरण है न पूंजीवाद और न...
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