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भारतीय उपभोक्ता क्रांति का उत्सव-- अभय कुमार दूबे

इस बार भारत में भूमंडलीकरण की पच्चीसवीं दिवाली मनी। परंपरा निष्ठ मेरी यह बात सुनकर थोड़े दु:खी हो जाएंगे। वे पूछ सकते हैं कि 1991 में शुरू हुए भारतीय अर्थव्यवस्था के 25 साल जरूर पूरे हो रहे हैं, लेकिन भारतीय परंपरा से पूरी तरह असंबद्ध राजनीतिक-आर्थिक प्रक्रिया को दिवाली से जोड़ने की क्या तुक है? इसके जवाब में कुछ जोखिम उठाकर मैं यह कहना चाहूंगा कि भूमंडलीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय...

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क्‍या जरूरी है कि नींद झटके से ही खुले? - गोपालकृष्‍ण गांधी

मैंने कक्षा में सिंधु घाटी सभ्यता पर लेक्चर खत्म किया ही था और सोच रहा था कि क्या मुझे अगली क्लास में सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के कारणों (जिनमें भूकंप भी शामिल है) पर बात करनी चाहिए कि तभी मेरी कुर्सी, डेस्क, लैपटॉप सभी डगमगाने लगे। वास्तव में, ऐसा लग रहा था, जैसे पूरी दुनिया ही डोल रही हो। चंद मिनटों बाद मैंने इस भूकंप के बारे में और...

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पेमेंट बैंकों से ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग का विस्तार होगाः वर्ल्ड बैंक

वाशिंगटन (एजेंसी)। देश में 11 नए भुगतान बैंकों के चालू होने से ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग सेवाओं का विस्तार होने की उम्मीद है।   वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक आरबीआई के इस निर्णय से ग्रामीण इलाकों में रेमिटेंस (बाहर से पैसे भेजना) की बेहतर सुविधा मुहैया कराने में मदद मिल सकती है। पमेंट बैंक उन बाजारों के छोटे बचतकर्ताओं (मुख्यतः ग्रामीण इलाके) के लिए होंगे जहां बैंकिंग सेवाओं की बहुत कमी...

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जनतांत्रिक मूल्यों से जुड़े सवाल- पुष्पेश पंत

पूर्व पाक विदेश मंत्री कसूरी की पुस्तक के भारत में विमोचन को लेकर जिस अशोभनीय विवाद ने तूल पकड़ा है, उसने हमें यह सोचने को विवश कर दिया है कि आज हमारे देश में कट्टरपंथी असहिष्णुता किसी एक तबके या मजहब तक सीमित नहीं रह गयी है. मुंबई में इस कार्यक्रम का आयोजन करवानेवाले सुधींद्र कुलकर्णी के मुख पर स्याही पोत शिव सैनिकों ने अपना ही नहीं, देश का मुख...

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लेखकों के विरोधी तेवर अच्छी बात - मृणाल पांडे

राजनीति और राजकाज पर दलगत राजनीति से बाहर कई अलग-अलग कार्यक्षेत्रों में भी गंभीरता से विचार किया जाता है। शासन उदार और संवेदनशील हो तो राजनीति के बाहर से आ रही प्रतिरोध की आवाज को सादर सुनकर राजनीति में संशोधन किए जाते हैं। पर यदि शासक आलोचना को राजद्रोह मानने पर उतारू हो जाए तो छुटभैये मुसाहबों द्वारा साहित्यिक, अकादमिक या स्वैच्छिक संगठनों से जुड़े आलोचकों को अपमानित करने से...

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