पिछले कुछ समय में सरोगेसी का कारोबार तेजी से फैला है। दुनिया भर से जोड़े भारत में कुकुरमुत्ते की तरह उगते आईवीएफ क्लिनिक्स में आते हैं, जहां किराये की कोख उपलब्ध होती हैं और वे उन्हीं के जरिये अपने बच्चों को जन्म देते हैं। पर इस कारोबार के लिए न तो कोई कानून है और न ही कोई निगरानी तंत्र, जिसकी वजह से इसमें शोषण भी बहुत होता है। पेश...
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गांवों को गोद लेना असली दायित्व- डा अनिल जोशी
यूरोप की अर्थव्यवस्था दूसरे विश्वयुद्व के बाद पूरी तरह लड़खड़ा गई थी और उस समय उद्योग को मूलमंत्र मानकर विकास की रूपरेखा तैयार की गई। इसी समय विकास की दिशा में दो बड़े परिवर्तन हुए। पहला विकास की परिभाषा गढ़ी गई, जिसका मतलब सीधा-सा यह था कि उद्योग और उससे जुड़े तमाम आगे-पीछे के आयामों को ही विकास मान लिया जाए। दूसरा इसी के बाद भोगवादी सभ्यता का तेजी से...
More »...कुछ ज्यादा ही पीछे छोड़ दिया जंगल को हमने-- मुकेश केजरीवाल
मुकेश केजरीवाल, नई दिल्ली। जंगलों को काट कर शुरू किए "तरक्की" के सफर में हम इतना आगे बढ़ गए हैं कि अब इनकी कामचलाऊ मौजूदगी कायम करने में भी सांसें फूल रही हैं। अपने ही लक्ष्य के मुताबिक हमें अब तक देशभर में कम से कम 33 फीसद क्षेत्र को हरियाली से भर देना था, लेकिन हम सिर्फ 24 फीसद वन क्षेत्र के साथ इस मुकाम से बेहद दूर खड़े...
More »कहां है सुधारों की अगली खेप-- रामचंद्र गुहा
सन 2009 के आम चुनाव के ठीक बाद मैंने बेंगलुरु में एक भाषण सुना, जो नई सरकार के लिए नीतियों के नए रोडमैप पर था। वक्ता थे राकेश मोहन, जो उद्योग व वित्त मंत्रालय में वरिष्ठ पदों पर रह चुके थे और उस वक्त रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर थे। राकेश मोहन का कहना था कि आर्थिक सुधारों की पहली लहर ने व्यापार को सरकारी नियंत्रण से बाहर निकाला और...
More »कछुआ चाल से चल रहा है समेकित बाल विकास कार्यक्रम
सुप्रीम कोर्ट के कई अंतरिम आदेशों के बावजूद सरकार समेकित बाल विकास कार्यक्रम को अभी तक सार्विक नहीं बना पायी है। इस बात का खुलासा चौदहवीं लोक लेखा समिति की रिपोर्ट(2014-15) से हुआ है। लोक लेखा समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 14 लाख बसाहटों में आंगनबाड़ी केंद्रों को संचालित कर पाने का महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का लक्ष्य निकट भविष्य में पूरा होता नहीं जान पड़ता। (देखें...
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