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समाख्या की साथिनें- निवेदिता

हमारी मुलाकात ट्रेन में हुई थी। पहली बार जब मैं उससे मिली तो वह बेहद डरी और जिंदगी से हारी हुई दिख रही थी। वह परेशान थी अपने पति की लगातार हिंसा से। उसकी आंखों में मानो बादल तैर रहे थे, जिसे वह सबकी नजरों से बचा कर पोंछ लेती थी। जब हम बातें करने लगे तो पता नहीं उसके दिल का कितना कोना भीग रहा था। जैसे डूबते को...

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खस्ताहाल बैंकों के साथ कैसे होगा विकास - धर्मेंद्रपाल सिंह

अब तो वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी मान लिया है कि सार्वजनिक बैंकों की हालत बेहद खस्ता है। इस साल मार्च तक कर्जदारों के पास देश के सभी बैंकों का 30.9 खरब रुपया फंसा पड़ा था, जिसमें अकेले सार्वजनिक बैंकों के 26.7 खरब रुपए हैं। उनका नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) खतरनाक सीमा पर खड़ा है। खस्ताहाल बैंकों में प्राण फूंकने के लिए कुछ समय पहले वित्त मंत्री ने चार...

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दलित परिवार की बेटी ने साहस को बनाया हथियार

र (मध्‍यप्रदेश)। लगातार कई बार प्रशासन को ट्यूब के सहारे खइड़िया नदी को ग्राम देदला के बच्चों और अन्य लोगों द्वारा पार करने के जोखिम के बारे में अवगत कराया गया। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। परिणाम यह हुआ कि शुक्रवार को महेंद्र (15) को ट्यूब से नदी पार करना महंगा पड़ गया और वह काल के गाल में समा गया। ऐसे में पुल की मांग को लेकर कई दिन...

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किसानों की खुदकुशी के सबब- विनोद कुमार

जरा गौर कीजिए कि इसी देश में करीब अठारह-बीस करोड़ भूमिहीन दलित, अति पिछड़े मजूर हैं। उनके जीवन में यह मौका ही नहीं आता कि वे बैंक से कर्ज लें, खेती करें, उनकी फसल नष्ट हो और वे आत्महत्या कर लें। इसका अर्थ यह नहीं कि हम किसानों की आत्महत्या से पीड़ा का अनुभव नहीं करते। लेकिन इस बात को समझना तो होगा कि एक भूमिहीन किसान या मजूर आत्महत्या न...

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सदियों के अन्याय पर माफी कब- सुरेन्द्र कुमार

एक भाषण कितना बड़ा बदलाव ला सकता है! बेशक यह नेहरू के अविस्मरणीय भाषण 'नियति के साथ भारत की भेंट' और मार्टिन लूथर किंग की भावनात्मक प्रेरणा 'मेरा एक सपना है' के स्तर का न हो, लेकिन बीती 14 जुलाई को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में शशि थरूर का पंद्रह मिनट का भाषण भारत में 200 वर्षों के ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन पर हाल के दिनों का सबसे तीक्ष्ण, प्रभावशाली और कटु आलोचना...

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